हम जो भी करते हैं वह एक दुश्चक्र है। हमारे कुछ भी करने से मैं मजबूत होता है और मैं मजबूत होने से हम और किसी कार्य में उलझ जाते हैं, यह एक दुष्चक्र है। इसी तरह से जीवन में सुचक्र भी जगह ले सकता है। यानी जब हम बिना हस्तक्षेप किए जस का तस देखते हैं तो मैं गलना शुरू हो जाता है, और उस मैं के गलने से होश जगह लेना शुरू हो जाता है।
जिसे हम जीवन कहते हैं वो दुश्चक्र की एक गाथा है। अभिकल्पना और प्रयास से हम निर्मित होते हैं, और हमारे निर्मित होने से कल्पना या प्रयास और दृढ़ होते जाते हैं।
धर्म यानी सुचक्र में प्रवेश कर जाना है, दुश्चक्र का टूटना ही धर्म है। मन या बुद्धि ने तोड़ते तोड़ते मैं नाम की इकाई तक पहुंचा दिया है, क्षुद्र छोटेपन में पहुंचा दिया है। मेरा ज्ञान, मेरा परिवार, मेरा देश, ये तोड़ की प्रक्रिया है, जहां अकेलापन है। जबकी अस्तित्व अकेलापन नहीं है, और अस्तित्व साथ भी नहीं है। तोड़ने की प्रक्रिया का अंत ही धर्म है।
मैं कुछ करता हूं तो मैं बनता हूं, जैसे जैसे मैं नहीं होता हूं, तो जो विराट है, अशेष है, जो समय से परे है, वह जीवन में अक्सर लेने लगता है। समय का टूटना जीवन को अशेष में ले जाता है।
ताओ ते चिंग की एक शिक्षा है "वू वी" और "यू वी"।
वू वी - कुछ ना करना, होने देना, घटने देना। जैसे अस्तित्व घट ही रहा है, सूरज की रोशनी गाल पर घट ही रही है।
यू वी - अस्तित्व में आप कोई नया आविष्कार नहीं कर सकते हैं, हमने कुछ बनाया नहीं है हमने केवल खोजा है, कोई कॉम्बिनेशन खोजा है, जिससे सुविधा है। जैसे भोजन पहले से उपलब्ध सामग्री से बनाया हुआ कुछ स्वादिष्ट चीज है, जो शरीर के लिए उपयोगी है।
अस्तित्व में संतुलन पहले से है, आप सिर्फ असंतुलन को हटाते हैं। असंतुलन को पोंछने को कहते है "यू वी"। इससे कभी कभी संतुलन सध जाता है, इससे वू वी में छलांग लग जाती है।
साइकिल चलाते समय असंतुलन को हटाना यू वी है, और संतुलन में साइकल का चलना वू वी है।
अचानक से होश आता है वो है वू वी, लेकिन उसके आते ही मैं भी आ जाता है। जैसे कि होश आया की यह मैं कहां अपना समय व्यर्थ कर रहा हूं, और जैसे ही यह कहा कि अब मैं यह दोबारा से नहीं करूंगा, तो फिर से मैं आ गया। अब मैं दुबारा से क्रोध, काम वासना में नहीं लिप्त होऊंगा, तो वही पुराना ढर्रा फिर से आ गया।
यह असंभव प्रश्न की कीमिया वू वी को अवसर देना है। तैरना पहले से विद्यमान है, बस भय को हटाया जाता है।
यू वी प्रश्न का उठाना है, उससे वू वी को सहज ही जगह मिल जाती है। कुछ नहीं करने वाला भी वहां कोई नहीं है,
मेरी भूमिका के बिना इस क्रिया का होना क्या है?
जीवन बड़ा कृपालु है, वह हमारी हिंसा भी स्वीकार कर लेता है। यू वी के तुरंत बाद वू वी शुरू हो जाता है, और वही "ते" है, उसी से "ताओ" में प्रवेश हो जाता है।
सोए हुए तरीके से जीवन जीने से, व्यक्ति का ढर्रा बहुत मजबूत हो जाता है। नादानी एक ही होती है कि मेरा हित कैसे हो। लालच को ना हटाना है ना उसको बढ़ाना है, बस यही देख लेना है कि इस समय यह लालच ही मैं हूं।
जब हम यह प्रश्न उठाते हैं कि वह जीना क्या है जो हमारे द्वारा उठाए गए दूसरे कदम से मुक्त है, तो हम यू वी में भरपूर काम कर रहे हैं, इससे वू वी सहज ही जीवन में जगह लेता चला जाएगा।
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Ashu Shinghal
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