मन शरीर का ही एक क्लोन है। पैर यानी क्या, हाथ यानी क्या, शरीर या मन को ऐसे देखिए कि जैसे पहली बार देख रहे हैं। गुरु वो कला है, वो कीमिया है, जो अंधकार रूपी छवियों को पोंछकर, प्रकाश रूपी निर्मलता जीवन में उघाड़ देती है।
लाओत्से अस्तित्व में एक बहुत विराट घटना हैं। बुद्धि सच्चे चमत्कार को पकड़ने में असमर्थ है, सत्य बताना लगभग असंभव है। यदि आप किसी को सत्य बताएंगे तो शत्रुता पैदा हो सकती है, क्योंकि वो उनकी पूरी बनावट पर एक गहरा संकट है। क्लोनिंग एक साइलेंट पॉयजन है।
लाओत्से की एक अद्भुत रचना है "ताओ ते चिंग"। ताओ का अर्थ है नियम, यानी रित, यानी धर्म, यानी ऐसा नियम जो जीवंत हो। ते यानी जो ताओ की अभिव्यक्ति है। ताओ अव्यक्त है, ते व्यक्त है।
अद्वैत का प्रकट रूप ते है, प्रेम से जो एक्शन पैदा होता है वो ते है, जिसमें मैं की कोई भूमिका नहीं है उससे कुछ कर्म पैदा होते हैं, वो ते है। बुद्ध की उपस्थिति है करुणा, उनकी उस पार से लगाई गई पुकार ते है।
जागरण वो धरातल है, जिस पर तथाकथित रूप से, जिसको हम होश या बेहोशी समझते हैं, वह दोनों ही घटते हैं। जगत का स्वभाव ही है संबोधि या इनलाइटनमेंट, इस समझ से जो जीवन में सौंदर्य घटता है, वो ते है।
आप ताओ पर काम नहीं कर सकते हैं, आप ते पर काम कर सकते हैं। ये धोखा है कि आप होश में आ सकते हो, आप सिर्फ जो होश में आने में बाधा है, उसको हटा सकते हो। जैसे ही ते को जगह मिलती है वहां ताओ पहले से ही उपस्थित मिलता है।
हम दूसरे कदम के द्वारा पैदा भ्रम पर काम कर रहे हैं, क्योंकि मैं ही धुंध हूं। जब मैं उपस्थित होता हूं, तो मैं उपस्थिति के भी ऊपर चढ़ बैठता हूं। ना यह कोरी गप्प है, ना ये गंभीर काम है, ये दोनों हो बातें बुद्धि का निष्कर्ष हैं।
ते या जगत कोई नीति नहीं है, कोई आचार संहिता नहीं है। जब जीवन में मैं जैसी कोई चीज नहीं होती है, तो आचरण बिलकुल अलग हो जाता है। जगत लोभ, भय, क्रोध नहीं है, जगत सौंदर्य का दूसरा नाम है।
हमारा व्यवहार बनावटी है, यदि हमारे बीच में कोई पूर्व निर्धारित छवि नहीं है, तो हमारे आपके बीच में व्यवहार क्या होगा? हम आप केवल लेखा जोखा रखते हैं, किसी कारण से ही किसी से व्यवहार करते हैं। आकाश गीत का कोई लेखा जोखा नहीं रखता है। गीत आकाश में प्रकट है पर आकाश गीत से निर्लिप्त है। गीत घटने के बाद वह आकाश से पूरा का पूरा पुंछ जाता है, कोई निशानी नहीं छोड़ता। पूरा अस्तित्व ऐसा ही है, निर्लिप्त। इस अस्तित्व के व्यवहार का कोई लेखा जोखा कहीं नहीं है।
संबंधों में संबंध घटा ही हुआ है। मैं यदि बीच से हट गया तो एक अलग व्यवहार वहां पाया जायेगा, जो हमारे तई नहीं है, जो हमारे द्वारा तय नहीं किया जा सकता है।
गीत और कान के बीच में जो भी घट रहा है वो ते है। सुंदरता ते है, जबकि हम सुंदरता की व्याख्या को सुंदरता मान लेते हैं।
जो घट रहा है उसपर से मेरा पूरा का पूरा हट जाना, पहला कदम है। पहला कदम घटा ही हुआ है। अनुपस्थिति के रूप में भी जो मैं पैदा होता हूं, वह कहता है कि मैं उपस्थित हूं, या मैं अनुपस्थित हूं।
यहां हम बस हमारे द्वारा उठाया गया, दूसरा कदम पोंछ रहे हैं। इससे जो पहला कदम है, उसे जीवन में प्रकट होने का अवसर मिल जाता है। यदि हम दूसरे कदम में जीते हैं, और मेरा होना हमेशा दूसरे कदम में ही जी सकता है, तो जो संपूर्ण अस्तित्व आनंद के रूप में प्रकट है, वह सुख और दुख में विभाजित हो जाता है; जबकि जीवन निसर्ग का एक विराट उत्सव है। यह बात बिल्कुल सत्य है पर ऐसा हो, इसलिए यदि आप कुछ करेंगे, तो जीवन में वो सौंदर्य नहीं उतरेगा।
लाओत्से कहते हैं, चुप होकर के पूरे अस्तित्व से संवाद करिए, जो नाकुछ है वो ही सम्राट है, नाकुछ होकर जगत को भोगिए।
वह जीना क्या है, जिसमें मेरी कोई भूमिका नहीं है? तो ते के ऊपर जो हमारे द्वारा आरोपित मैं है, उसको यानी अपने आप को हमने, ते से पोंछ दिया; वहीं ताओ प्रकट है।
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Ashu Shinghal
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