top of page
Image by NordWood Themes
Image by NordWood Themes

बनना या घटना: जीवन में पूर्णता लाने का रहस्य क्या है?

ध्यानशाला सुबह का सत्र, 23 मई 2024


एक बूढ़े व्यक्ति ने एक अनमोल रत्न एक युवक को दिया की यह तुम्हारी सारी उदासी सारा दुख हर लेगा, पर यह छोटी-मोटी उदासी नहीं हरेगा, यह मौलिक दुख को जड़ से समाप्त कर देगा। जब आप चाहते हैं कि कोई आपका मान सम्मान करे, तो यह आपकी दीनता को ढकने का एक असफल प्रयास है। आप कोई ऊंचा पद इसलिए चाहते हैं ताकि आप अपनी हीनता को ढक सकें। जब आप कोई ऊंचा पद हासिल कर लेते हैं तो वही दीनता आशंका में बदल जाती है कि कहीं इसको कोई हमसे छीन ना ले।


अक्सर जो हमें सहायता मिलती भी है, उसके लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है, फिर वह हमारी निजता या मर्यादा का हनन है। जितना किसी से दूर रहने का संकट है उतना ही साथ रहने का भी संकट है। उस बूढ़े व्यक्ति ने कहा कि यह रत्न आधा अधूरा नहीं देता, यह पूरा देता है, पर उसके लिए तुम्हें राजी रहना होगा। उस युवक ने वह रत्न ले तो लिया पर उसके जीवन में कुछ बदलाव हुआ नहीं। एक दिन उसने गुस्से में आकर के वह रत्न फेंक दिया।


वह रत्न उसके पड़ोसी के घर में जाकर गिरा और वहां पर जो उसका एक दोस्त रहता था उसको वह मिल गया। उस रत्न के मिलने से उसके दोस्त के जीवन से सारी की सारी समस्याएं, दुख, दरिद्रता, असहायता समाप्त हो गईं। दोनों मिलकर के एक और साधु के पास गए कि ऐसा क्यों है कि एक पर यह रत्न काम कर रहा है, और दूसरे पर नहीं काम किया। साधु ने कहा कि तुमने अपने आप को बनाए रखकर के दीनता को समाप्त करने का प्रयास किया, इसीलिए इस रत्न ने तुम्हारे ऊपर कोई प्रभाव नहीं किया।


हम समझते हैं कि हम बने रहेंगे और अकेलापन समाप्त हो जाएगा, तो यह बात संभव नहीं है। तुम्हारा दोस्त पूरी तरह से तैयार हो गया कि अकेलापन पूरी तरह से समाप्त हो जाए, फिर चाहे उसके लिए मेरी ही आहुति क्यों ना देनी पड़े, इसलिए इस रत्न ने तुम्हारे दोस्त पर काम किया। यदि हम बने हुए हैं, तो वहां पर दरिद्रता कैसे समाप्त हो सकती है। दरिद्रता वहां पर समाप्त होती है, जहां पर हम घट रहे हैं। दीनता, हीनता, अनाथ, अकेलापन आमूल रूप से समाप्त हो सकता है, बस हमारी तैयारी नहीं है उसके लिए, हम राजी नहीं है उसके लिए।


हमें जो रस आता है वह दूषित रस है, जब धन नहीं है और थोड़ा सा धन मिल जाए तो हमें थोड़ा सा रस आता है। यह खेल चलता रहता है हमारे अंदर, जड़ मूल से दरिद्रता समाप्त हो जाए उसके लिए हम तैयार ही नहीं हैं। हम चाहते हैं यह खुजली होने का और खुजाने का जो खेल है, यह बना रहे। हम चाहते हैं खुजाने के बाद जो जलन होती है वह ना हो, पर मजा पूरा आता रहे, और खुजली से मुक्ति हम नहीं चाहते हैं।


किसी रत्न में प्रसाद देने की क्षमता नहीं होती है, हम जो जिंदा हैं, वही प्रसाद ग्रहण नहीं कर पाते हैं, तो कोई रत्न कैसे प्रसाद देगा। जब जीवन का रत्न हमको प्रसाद नहीं दे पा रहा है, तो कोई जड़ पत्थर कैसे प्रसाद दे सकता है। जो मिलता है वो बिछड़ जाता है, हम आप जो यहां पर कीमिया सीख रहे हैं, वह समूल समाधान है। मदद यदि आप भरपूर चाहेंगे तो वह भरपूर उपलब्ध हो जाएगी, पर मदद यदि आप अपने हिसाब से चाहेंगे, तो फिर कीमिया काम नहीं कर पाएगी।


यह अस्तित्व परम करुणामय है, यह आकाश ये धरती, यह सब चैतन्य, अगाध प्रेम से बने हुए हैं। इस बात का हमें आपको पता नहीं चलता है, क्योंकि हम अपनी बनावट के अनुसार गति करते हैं। यह मैं केवल क्षुद्र ही पकड़ सकता है, चील बहुत ऊंचा उड़ती है, पर उसकी नजर हमेशा मरे हुए चूहे पर होती है। विराट को पकड़ने या समझने का मैं में समर्थ नहीं है। जिसको हमने बनाया हुआ है उसको हम सर्वश्रेष्ठ समझते हैं। हम संस्थाओं को महत्व देते हैं, तो विराट की तरफ देख नहीं पाते हैं।


मेरी बात मत मानिए, अपने तर्क को जागृत रखिए, और हृदय को भी जागृत रखिए, खुद देखिए कि क्या हमारी दृष्टि क्षुद्र पर है? यदि हमारी दृष्टि धन, परिवार, जाती, राष्ट्र, धर्म, पद, सम्मन आदि पर ही केंद्रित है, तो विराट जगह नहीं ले पाएगा। पहचानें कि जो अभी हम जी रहे हैं वह फला फुल अघाया नहीं है, और यह देखने से ही तृप्त जीवन को अवसर दिया जा सकता है। यह बात नहीं है की भविष्य में मैं कुछ प्राप्त कर लूंगा, अभी ही पूर्ण आहुति दे दीजिए। कीमिया यही है कि यह जो मैं है, जो ना फला, ना फूला, और अघाया नहीं है, उससे जड़ मूल से मुक्त है।


ऐसा भी जीवन संभव है, जैसे बुद्ध जिए, जो फल, फूल और अघाह करके कुछ अलग तरीके से चलता है।

________________________

Ashu Shinghal

1 view0 comments

Comments


bottom of page