बिना पार को रचे आर में होना क्या है? इसका कोई उत्तर नहीं आएगा, उत्तर आया तो समझिए कि पार बन गया।
जो सम्यक रूप से प्रारंभ में चल पड़ा, तो वो पहुंच ही गया। पहले कदम पर यदि हमने द्वैत के तिलस्म को नहीं बूझा, तो आगे द्वैत ही गहराता जायेगा।
एक फकीर ने कहा मैंने एक सपना देखा है। यह सुनकर उसके सारे शिष्य वहां से चले गए। उनके एक शिष्य ने कहा पहले थोड़ा हाथ मुंह धो लें, पहले थोड़ी चाय पी लें। सपने की व्याख्या करना और गहरा सपना ही है।
द्वि के सपने में, यदि द्वि से गति हो रही है, तो वह द्वि को ही ले कर के आएगी। आर और पार के विभाजन से जो शुरू होगा, वो आर और पार पे जा कर के ही खत्म होगा। अखंड की यात्रा अखंड से ही शुरू होगी, और अखंड में ही खत्म होगी। जो आर है यदि उसकी प्रत्यभिज्ञा मुझे नहीं हो सकती है, तो जो पार है उसकी प्रत्यभिज्ञा भी मुझे नहीं हो सकती है।
कभी नहीं बूझने का मतलब कभी ना बूझना, ऐसा नहीं है कि अभी नहीं बूझ रहे हैं, पर कभी बाद में बूझ जाएंगे।
रूमी की एक कहानी है। ईसा मसीह पीछे देखकर के भाग रहे थे। एक व्यक्ति ने उनसे पूछा कि आप तो ईश्वर की संतान हैं, फिर आपको किसका भय है। ईसा मसीह ने कहा कि मैं मूर्ख से भाग रहा हूं, मैंने मूर्ख को ठीक करने की कोशिश करी पर वो ठीक नहीं हुआ। मूर्ख से जितनी जल्दी भाग सकें, भाग जाएं। मूर्ख की उपस्थिति धीरे धीरे व्यक्ति को सुखा देती है, पूरे जीवन को चुपचाप उजाड़ देती है। जैसे हम किसी बहुत ठंडे पत्थर पर लेटते हैं, तो उसकी ठंड हमारे सारे शरीर में व्याप्त हो जाती है; ऐसे ही थोड़ी सी भी मूर्खता हमारे सारे जीवन में व्याप्त हो जाती है।
मूर्ख कोई बाहर नहीं बैठा है, मूर्ख भीतर है, अहमक (अहम) सदा ही मूर्ख है। समस्या फिर भी हमें मांजकर चली जाती है। मूर्खता है कि तथ्य जानकर भी उसमें तत्पर ना होना। जैसे छोटे बच्चे होते हैं, अभी एक सवाल पूछा और उसके उत्तर में कोई रुचि नहीं है, तुरंत दूसरा सवाल पूछ लिया। सवाल पूछते जाना पर क्रिया में नहीं उतरना। हमारा मन बेकार के सवाल पूछता रहेगा, सूचना इकठ्ठा करता रहेगा, योजना बनाता रहेगा, पर जीवन में होश को अवसर नहीं देगा।
सिवाय आर के सम्यक दर्शन के, पार जैसी कोई चीज होती ही नहीं है। हम इसको भी पार जैसा बना लेते हैं, यह बड़ी नादानी है। स्वप्न के भालू से बचने के लिए, जागने के बाद हमको क्या करना पड़ेगा, हमें उससे बचने के लिए कहां भगाना होगा? तथ्य के प्रति जागना काफी है, स्वप्न टूटा तो जागृति मौजूद ही है। यदि निंद्रा से उठने के बाद थोड़ी तंद्रा बची भी हुई है, तो वो मुंह धोने लेने से, चाय पीने से समाप्त हो जाती है।
हमें सत्य की प्यास नहीं है, हमें सिर्फ सत्य की योजना बनाने में रुचि है। सोते हुए हम जागने का सपना देख रहे हैं। या सोते-सोते मन जागने का भ्रम पैदा कर लेता है। यदि प्रकाश है, तो उसकी उपस्थिति में कुछ हो जाता है, पर प्रकाश कुछ नहीं करता है। हम सोचते हैं कि प्रकाश होने पर क्या क्या हो जायेगा, और यहीं से हमारी आध्यात्मिक यात्रा शुरू हो जाती है।
धर्म यानि जो शाश्वत नियम है, वो कैसे असफल होगा, धर्म कभी असफल नहीं हो सकता। पर हम पाते हैं कि यहां जो भी संगठित धर्म हैं, वह अपना मर्म खो चुके हैं।
हमारी दृष्टि दूसरे की तरफ है, जब हम कहते हैं कि आप अपनी तरफ देखिए। या फिर जब हम यह सुनते हैं कि आप अपनी तरफ देखें, तो हम कहने वाले को ही कहते हैं यह कहकर, आप भी तो अपनी तरफ नहीं देख रहे हैं; तो बात ही गलत हो गई। यदि हम अपनी तरफ देख रहे होते, तो यह वक्तव्य आ ही नहीं सकता था। यदि बुद्ध भी पास में हों फिर भी हम असफल हो जाते हैं। वही तर्क श्रेय की ओर ले जा सकता है, या वही तर्क प्रेय की तरफ ले जा सकता है। यदि हमारी दृष्टि अपनी तरफ होती है, तो अज्ञेय, सम्यकता जीवन में व्याप्त होती चली जाती है।
अहमक का अर्थ है मूर्खता। सम्यक धर्म का मूल अर्थ है अपनी तरफ दृष्टि होना। पार को निर्मित करने से बचिए, आर के प्रति सिर्फ यथावत जाग को अवसर भर दीजिए। बिना दूसरे या अपने कान में खबर किए, तथ्य का यथावत दर्शन होना मूल बात है। सत्य को अपनी उपस्थिति से मलिन मत होने दीजिए। रिपोर्टिंग में आता है कि अब असगजता नहीं है, तो यह बिल्कुल दूसरी बात है।
अहमक नादान लोग नहीं होते। मूर्ख और मूढ़ में बहुत फरक होता है। हम अपनी ही संभावना में खुद ही छुरा घोप देते हैं। यदि विश्लेषण, निंदा, स्तुति नैसर्गिक रूप से जा चुकी हो, तो ऐसा चित्त मनुष्यता के लिए एक द्वार है। यदि खुद को बचा ले जाएंगे, तो खुद को कभी जान नहीं पाएंगे। खुद को बिल्कुल नहीं बचा हुआ पाएंगे, तो जीवन में होश को भी व्याप्त पाएंगे।
आर में सम्यक रूप से जागना क्या है, जिसमें "या" या "पार" जड़ मूल से मिट गया हो? यह वह धर्म है, जिसमें हमको भी धर्म का पता नहीं चलता है। पार का वह पता चलना क्या है, जो मेरी भूमिका से पूरी तरह से मुक्त है? यदि मेरी भूमिका थोड़ी सी भी बच गई, तो मैं कोई पार निर्मित कर लूंगा।
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