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Ashwin

बुद्धि एक बैसाखी पर वह जीवन नहीं है (ध्यानशाला सुबह का सत्र, 24 नवंबर 2024)

ध्यानशाला सुबह का सत्र, 24 नवंबर 2024


भीतर एक ऐसी उपस्थिति है, जिसमें कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं है। जो है उसका बस निरूपण चल रहा है। जब हम यहां या वहां जीवन को समझते हैं, तो दुख होता है, वहम होता है। पर देख भर लेने पर, वह सदियों पुराना वहम भी तत्क्षण समाप्त हो जाता है।


बुद्धि एक बैसाखी की तरह है, जो सहयोग करती है, पर वह जीवन नहीं है। भीतर जमीन एक ही है, हमने अज्ञानवश जमीन को अलग अलग समझ लिया था, वह बड़ी भूल थी। हमने कुछ कल्पित धरातल निर्मित कर लिए हैं, जिनको पाने की होड़ में हम लगे हुए हैं।


वह जीना क्या है, जो खंडित धरातल से मुक्त है? जीवन का वह धरातल क्या है, जो खंडित नहीं है? झूठ को झूठ की तरह देख लेने में कोई बलिदान नहीं करना होता है। हम सबके अंदर तुच्छता है, तभी तो हम चूहा दौड़ में उलझ जाते हैं। मैं का भाव उस धरातल पर पैदा होता है, जो सच्चा है ही नहीं। समय सुविधा प्रदान कर सकता है, पर समय जीवन का आधार नहीं है।


समय की धारणा पर जो बना था, वह ढह गया। मैं का एहसास समय से ही बना हुआ है। सहज यह अन्वेषण प्रकट हुआ कि वह जीवन क्या है, जो समय से मुक्त है? इस प्रश्न के उठाने से ही समय की सारी संरचना भस्मीभूत हो गई। जिसको हमने धर्म अध्यात्म समझा था, वास्तव में वैसा कुछ नहीं है। यहां कोई व्यापार नहीं है, यह पूरा जीवन ही है। एक यांत्रिक मशीन के द्वारा ही हमारा शोषण किया जा रहा है।


जिन चेहरों में विकल्प हैं, क्या वो वास्तव में जीवन है? जो विकल्प जैसे चेहरे लग रहे हैं, वो जीवन नहीं है, यह जीवन विद्या या ब्रह्म विद्या है। यह सत्य को जानने की विधा है, जिसको शिव ने पार्वती को कहा था। यह जीवन में व्याप्त घटना है, जिसका हम अन्वेषण कर रहे हैं। मैं नाम का कोई भी चेहरा सच नहीं है। जीवन का मूल स्वभाव दो चेहरों का नहीं होना है। जीवन का वो चेहरा क्या है, जो एक या दो के गणित से ही मुक्त है?


क्या जीवन के वास्तव में दो निदान हैं? बिना अनगढ़िया या अनबने को जीवन में उतारे, क्या कोई और निदान है? जिसको हम निदान समझे थे, वो निदान नहीं है। अनबना को उघाड़ लेना ही एकमात्र निदान है। मशीन जीवन नहीं है, अनबना, अनगढ़िया ही जीवन है।


हम सोने वाली नहीं, पर जगाने वाली कहानी आपस में साझा कर रहे हैं। रूमी की एक कहानी है। एक व्यक्ति जो जानवर का चमड़ा उतारने का काम करता था, वो गलती से इत्र की गली में चला गया, तो वह वहां जाकर बेहोश ही हो गया। जब एक बदबूदार चमड़ा उसे सुंघाया गया, तभी जाकर वो उठ पाया, और उठते ही वापस वह उसी गली में भागा, जिस बदबूदार गली में वह काम करता था।


मैं को बड़ा सुकून है अपनेपन में, मान इकठ्ठा करते रहने में। कोई कहता है कि आप तो देव पुरुष हो, इसको हमने निदान समझ लिया है। यह क्या मरहम है, या घाव को बनाए रखने की कोई जुगत है? हो सकता है अनंत जीवन की प्यास हमको साथ साथ लाई हो। थोड़ी से ही इत्र से ही हम बेहोश हो गए हैं। सुगंध का अपना ढंग है, वह धीरे धीरे ही अपना काम करती है।


जो निरपेक्ष है वह तो विद्यमान ही है। वह निदान क्या है, जिसका कोई विकल्प ही नहीं है? पुराना ढंग टूटेगा, तो थोड़ी पीड़ा तो होगी ही ना। अब हम वैसे पुराने ढंग की तरह से आसक्त नहीं हो सकते हैं। यह बस थोड़े पुराने ढर्रों को छिलने की बात है। आत्म धैर्य समय पर निर्भर नहीं होता है। यदि बहुत जल्दी है, तो वह पुरानी बासी बदबूदार गठरी तो है ही, पर अब हम वहां ज्यादा देर रुक नहीं पाएंगे।


हम अभी इत्र की गली में नहीं घूमे हैं। जल्दी से निदान में मत जाएं। अपने विवेक का उपयोग करिए। हम जो कर पा रहे हैं साथ में, वह बहुत पावन है। अमूर्छा एकमात्र उपचार है। अहम का समूल विसर्जन एकमात्र निदान है। यह सनातन धर्म है, यह किसी व्यक्ति से नहीं उपजा है। इत्र की गली से जब हम आएंगे, तो खुद ही हम अपना प्रमाण होंगे, किसी और से प्रमाण मांगने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जहां चमड़े का काम होता है, उस गली में गंधीयों के प्रमाण नहीं मिलते हैं।


दोहराव और मांजना, दो अलग अलग बातें हैं। हम साथ साथ आती हुई ताजी धूल को साफ कर रहे हैं। वो जीना क्या है, जो किसी भी तरह के सिद्धांत या दर्शन से मुक्त है? जो भी दर्शन बन करके आता है, उसको साथ साथ धोया भी जा रहा है। जिस धरातल पर दोहराव होता है, वह समाप्त होता चला जा रहा है। सत्संग, साथ चलने का बहुत बड़ा महत्व है।


गाइए की हम गंधी की गली में हैं। जो हमने साथ में साझा किया है, उसपर किसी व्यक्ति का कोई अधिकार नहीं है। जिसको छुईये, उसको ही यह अमृत बांटिए, कि ऐसा जीवन है जो सभी दुखों से मुक्त है। अपनी उपस्थिति से बांटिए, अपनी अनुपस्थिति से बांटिए, अपना कुछ करने से बांटिए, अपना कुछ न करने से बांटिए। यदि बेशर्त प्रेम है, तो इस सच को कभी भी कोई बुझा नहीं सकेगा।

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