एक साधु कुछ समय के बाद अपने मठ में लौटे तो देखा कि वहां पर ध्यान जैसा जीवन में उतर जाना चाहिए, वैसा नहीं हो रहा है। उन्होंने पाया कि वहां पर जो साधक थे, वह एक दूसरे की चुगली करते थे। साधु ने कहा कि यदि तुम जीवन भर भी ध्यान साधना करते रहोगे और यदि चुगली करोगे, तो कोई भी फल जीवन में अंकुरित नहीं होगा। चुगली ऐसी घटना है जो तुम्हारे अंदर इतने छिद्र कर देती है, जिससे तुम्हारी सारी ऊर्जा का अपव्यय हो जाता है। चुगली में या दूसरे की निंदा करने में बिना कुछ किए ही आपको श्रेष्ठ होने का एहसास होने लगता है।
अपनी तरफ तो हम देखते नहीं है और दूसरे का आंकलन करके हम क्या करेंगे? जो आंकलन हम दूसरों के बारे में करते हैं वह असल में हमारी स्थिति को दर्शाता है। जब हम दूसरे को देखते हुए अपने अंदर तथ्यात्मक रूप से देखते हैं, एक दर्पण की तरह, तो बहुत तेजी से वहां पर बदलाव होता है। यदि हम दूसरे को दर्पण दिखाने का प्रयास कर रहे हैं, तो हम एक दुश्चक में फंस रहे हैं। यदि आपका रुख दूसरे की तरफ है, तो यह एक अंतहीन दुश्चक है। समालोचना अपने लिए दर्पण है और चुगली दूसरे को दर्पण दिखाने जैसा है।
चुगली पैदा होती है तुलना, कुंठा, भय और हीन भाव से। जब हम अपने को देखने में सक्षम नहीं होते हैं, तो दूसरे की बुराई करके हम अपने आप को एक झूठा आश्वासन देते हैं। कुछ भी अपने को सिद्ध करने का प्रयास यह दिखाता है कि भीतर बहुत खोखलापन है, जो दूसरे में रुचि लेकर के अपने आप को व्यस्त रखे हुए है। जिसको आप बिल्कुल नहीं जानते हैं, उसके बारे में भी टिप्पणी करने लगते हैं। यह सब कुछ, जो आत्म अवलोकन करना चाहते हैं, उनके लिए घातक है।
हम ध्यान के बारे में बात बहुत कर सकते हैं, पर जब उस ध्यान को जीवन में अवसर देने की बात आती है तो हमारा मन विद्रोह कर बैठता है। विद्रोह का अर्थ है की ध्यान या होश जैसी कोई चीज होती ही नहीं है, यह आत्महंता जैसा निष्कर्ष है। धर्म की पहली सीढ़ी ध्यान या जागरण से शुरू होती है। कोई बात तथ्यात्मक हो या नहीं हो पर आप कैसे जान सकते हैं किसी के जीवन के बारे में की उनके जीवन में अप्रमाद या होश जैसी कोई चीज नहीं है?
यदि आप समझते हैं कि किसी की चुगली कर रहे हैं तो आप उसका नुकसान कर रहे हैं, तो यह बात सही नहीं है। यदि कोई व्यक्ति तिल भर भी जागृत है तो आप उसको बिल्कुल भी नुकसान नहीं पहुंचा सकते हैं। जहां जागृत जैसी घटना घटी है वह उस क्षेत्र को पहले ही छोड़ चुका है, जिस क्षेत्र को कुचला जा सकता है।
चुगली पैदा होती है ईर्ष्या से। चुगली करने से आपका एक ऐसा संघ निर्मित होता चला जाएगा जिनके जीवन में बहुत प्रमाद है। चुगली, परनिंदा करने वाले को बहुत जल्दी होती है कि वह बहुत सारे लोगों का समर्थन इकट्ठा कर ले। अपनी तरफ देखने को अवसर देने से धर्म शुरू होता है। अस्तित्व में यह जानता है की किसकी दृष्टि अपनी तरफ है, और किसकी दृष्टि परनिंदा में है। आपके साथ वही रुक सकता है जिसका तल आपके जैसा हो। यदि आपने अपने आप को देखना शुरू कर दिया है, तो वह जो कोई तल प्राप्त करना चाहते हैं, वह आपसे दूर हो जाएंगे।
प्रश्न - मैं जिस कार्य क्षेत्र में हूं वह मुझे जंचता नहीं है, मुझपर बहुत दबाब है, मेरा निज स्वभाव क्या है उसको कैसे पता करें?
आप जीवंत हैं आपके अंदर सोचने की क्षमता है, यह बातें तो आपको आपके बॉस ने नहीं दी हैं, तो आप पर दबाव किस चीज का है? जो चीज आपके रोजगार से नहीं आ रही है, उस चीज पर रोजगार का कब्जा क्यों है? उस क्षेत्र पर किसी का हस्तक्षेप क्यों होने देते हैं, जो उनके अधिकार में नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि आपकी नौकरी आपके जीवन को परिभाषित करती है? क्या आप ऐसा तो नहीं सोचते हैं कि यदि नौकरी चली जायेगी तो जीवन कम हो जाएगा? जीवन निसर्ग का एक बेशर्त उपहार है, उसका नौकरी से कोई संबंध नहीं है।
नौकरी सुविधा के लिए है, पर सुविधा का तब अर्थ है जब आप जीवंतता से भरे हुए हो। नौकरी चली गई तो लोगों की नजर में जो मेरी छवि है वो टूट जायेगी, कहीं मैं ऐसा तो नहीं सोचता हूं? यदि ऐसे फितूर आपके जीवन का निर्धारण कर रहे हैं, तो आपकी नौकरी ने आपके जीवन को दबोच कर नष्ट कर दिया है। जीवन की जो मौलिक बात है, उससे समझौता मत करिए। जो लोग कपड़ा देखकर मोल करते हैं, उनकी नजर का मोल भी क्या है, उनकी आप परवाह ही क्यों कर रहे है? जीवन की परवाह करिए, जो पूरे अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। जहां पर जीवन की बात है, वहां पर किसी भी प्रकार के समझौते की कोई बात नहीं है।
जब आप समझौता नहीं करेंगे तो कोई आपपर दवाब नहीं बना पाएगा। असल बात है कि भीतर जीवन की गुणवंता क्या है, वो महत्वपूर्ण है। यदि दूसरे या अपने दिखावे से आप भ्रमित हैं, तो आप हमेशा गुलाम रहेंगे। मुक्त व्यक्ति की तरह यहां चलिए, ताकि आपकी उपस्थिति में मुक्ति घटे। आपके मित्र भी ऐसे हों जो दिखावे में ना जाते हों। नैसर्गिक धरातल पर इतना वैभव है, जिसको आप चुका नहीं पाओगे। सौंदर्य दृष्टि पैसे से नहीं आती है, आप उसको चुका नहीं पाओगे। दिल में प्रेम नहीं है तो हीरों का हार पहनने से भी कोई शोभा नहीं है।
जहां जीवन धड़क रहा है, उससे जरा दोस्ती करिए। जीवन में जो सहज मिला हुआ सुकून या मौज है, उसकी अवहेलना करके कुछ हासिल करना ठीक नहीं है। आप यदि देखने में सक्षम नहीं हैं तो महंगा चश्मा पहनने से क्या होगा। जिस के लिए आप तनाव में हो, क्या वो दूसरों को दिखाने के लिए कर रहे हैं, या आप को वो खुद को चाहिए। क्या मैं दूसरों को दिखाने के लिए जी रहा हूं, या सिर्फ जीने के लिए जिया जा रहा है? जैसे पेड़ जी रहा है, जैसे हवा जी रही है, वैसे ही जीवन जिया जा रहा है, कोई शोक नहीं है, किसी से कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है।
प्रश्न - मेरा जीवन बासी है, उसको नया कैसे बनाया जा सकता है?
आप जब कुछ देखते हो, और उसके बारे में अपना ज्ञान प्रदर्शित करते हो, वह कहां से आता है? बाहर कुछ है जो किसी के प्रभाव में आकर के हिल रहा है, इसको यदि यथावत देखा जाए, तो यह एक ताजी घटना है। जब हम इसको कहते हैं कि यह पेड़ है और यह हवा से हिल रहा है, जब शब्दों में इसको बांधने का प्रयास किया गया, तो यह एक बासी घटना है। जो अभी घट रहा है, क्या उसका बिना नामकरण किए, उसको सीधा देखा जा सकता है? आप पाएंगे कि जो बासीपन है, वह जीवंत घटना में आपने डाला हुआ है।
जो सांस चल रही है, वो भविष्य में या अतीत में नहीं घट रही है, वह अभी घट रही है, अभी ताजी घटती हुई घटना को विचार बासी करता है। तकनीकी ज्ञान बासी नहीं होता, पर जीवन के स्तर पर हम जो यह सोचते हैं कि मैं पहले दुखी था, अब सुखी हूं यह बासी ज्ञान है। जीवन स्वभावगत रूप से ताजा है, यथावत देखने में कुछ बासी नहीं है। मैं यानी बासीपन, और यह जो पूरा अस्तित्व है यह ताजा होने में, मैं से मुक्त है। जीवंतता का कहीं कोई केंद्र नहीं है, सारा अस्तित्व आपस में अटूट रूप से जुड़ा हुआ है।
वह जीना क्या है जो मुझ बासीपन से मुक्त है? यह प्रश्न उठाने मात्र से ही आप पाएंगे कि आपके रोम रोम में होश फैल गया, नैसर्गिक होश के सामने बासीपन टिक नहीं सकता है। मैं यह हूं और मैं वह हो जाऊं, यह बासीपन से बासीपन में गति है, चुनाव रहित जागरण उसमें सारा बासीपन भस्मीभूत हो जाता है। होश में जो रिपोर्टिंग (समाचार, तथ्यात्मक सूचना) मिलती है, उसमें यह पाया जाता है कि जीवन सर्वदा बासीपन से मुक्त है।
प्रश्न - मैं एक महिला हूं और घरेलू हिंसा से ग्रसित हूं, क्या मेरे लिए कोई उपाय है?
पहली बात यदि शारीरिक हिंसा में आप हैं, तो तत्क्षण वो स्थान छोड़ दीजिए। यह दुनिया बहुत विराट है कहीं पर भी जाकर के आप आश्रय ले लीजिए।
मानसिक हिंसा में आपको देखना पड़ेगा कि ऐसा क्या है जिसकी वजह से आपका मानसिक रूप से शोषण हो रहा है। कहीं कोई संस्कार, कोई ठोस विचारधारा की, यही सही ढंग है जीवन जीने का, ऐसा तो कुछ नहीं है? जैसे कि जीवन का मतलब किसी की पत्नी या पति हो करके ही जीना होता है। परिवार, पति, पत्नी, देश, जाति, यह सब अस्तित्व ने नहीं बनाया है, यह सब अस्तित्व का स्वभाव नहीं है। यदि इन सब से जीवन संकट में आ गया है, तो तत्क्षण इन सब को छोड़ दीजिए। जो इस तरह की विचारधारा के लोग हैं उनसे भी आप दूर हो जाइए, वह खुद भी डूबे रहते हैं और चाहते हैं कि आप भी डूब जाएं।
समाज की जो संरचना है वह यह नहीं चाहती है कि कोई व्यक्ति मुक्त और आनंदित होकर के जिए। अपने अंदर देखिए कि मेरे अंदर ऐसी क्या विकलांगता है कि मैं एक विशेष तरह का जीवन जीने के लिए ही बाध्य हूं। अस्तित्व में ऐसी कोई शर्त नहीं है कि आप किसी विशेष से संबंधित हैं, तभी आपकी सांस चलेगी। कोई भी विशेष तरह का जीवन शैली की मांग, हमने आपने बनाई हुई है।
यदि मुझे पति बन करके ही सदा जीना है, तो जो पत्नी या विवाह नाम की संस्था है, उसका मैं हमेशा ही गुलाम रहूंगा। आपके अंदर ऐसे कौनसे संस्कार हैं, जिसकी वजह से आप उससे बाहर नहीं निकलना चाहती हैं। पत्नी होकर के जीना ही एकमात्र जीना नहीं है, तो आप आसानी से इस बंधन से निकल जाओगी। शोषण करने वाला और शोषण करवाने वाला, कहीं ना कहीं गहरे में एक दूसरे से जुड़े होते हैं। यदि आप शोषण नहीं करवाना चाहते हैं, तो कोई शक्ति आपका शोषण नहीं कर सकती है।
जब मुक्त होइए तो यह भली-भांति समझ लीजिए कि अब तक जो भी हुआ वह मेरी नासमझी की वजह से ही हुआ था, कोई बैर भाव ना रखें। यह समझ आगे आपको एक मुक्त जीवन जीने में सहायक बनेगी। ज्यादातर मामलों में अपने शोषण के लिए हम खुद ही जिम्मेदार होते हैं। जैसे हम संस्कारित हैं शोषण सहने के लिए, वैसे ही जो शोषण कर रहा है, वह भी संस्कारित है और बीमार है।
बिना किसी द्वेष के अपने जीवन की जिम्मेदारी अपने हाथ में लीजिए। मन पटे तो संगी चले नहीं तो चले अकेला। वास्तव में अकेला कोई नहीं है, जो अकेला होने के लिए राजी है, यह पूरा अस्तित्व उसके साथ हो जाता है; यह नियम है।
प्रश्न - हर इंसान में जागने की संभावना होती है, पर फिर हर कोई जाग क्यों नहीं पाता है?
इसका कारण है अपनी जिम्मेदारी स्वयं ना लेना, जबकि सत्य यह है कि मेरे जीवन में जो भी घट रहा है उसके लिए मैं ही जिम्मेदार हूं।
प्रश्न - मैं किसी की चुगली ना करूं पर कोई और मेरी चुगली करता है, तो मैं क्या करूं?
आप देखिए की आपके भीतर क्या हो रहा है, वो क्या है जिसमें हलचल होती है?
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