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Writer's pictureBikram Jha

तिरुवन्नामलाई में धर्मराज जी के साथ अनुभव: बिक्रम झा

दिनांक 8 से 24 तक जीवन का कुछ ऐसा संयोग बना की तिरुवन्नामलाई में रहने का अवसर मिला, आज इस पोस्ट के माध्यम से मैं कोशिश करूंगा अपने अनुभवों को शब्द देने की।


अगर पूरा अनुभवों को बारीकी से लिखने बैठूं तो शायद एक किताब भी कम पड़ जाये क्योंकि हर एक दिन अपने आप में एक नया अध्याय था। मैंने वहां रहते हुए अनुभव किया कि जीवन हमेशा उपलब्ध ही है, यह मन , बुद्धि का खेल है जो हमें फंसा कर रखता है।


मुझे पता नहीं मैं उसे प्रेम का नाम दूं या क्या दूं लेकिन मैंने हर संबंध में वह प्रेम की एक अकथनीय चीज को पाया, जहां व्यक्ति आपसे किसी भी उम्मीद से नहीं बल्कि सहज ही जुड़े होए है।


वहां का वातावरण के बारे में क्या ही बोलना, एक और अरुणाचल पहाड़ है तो दूसरी ओर झील है, करीब करीब हर रोज थोड़ी बहुत बारिश हो ही जाती थी तो गर्मी भी ज्यादा पता नहीं चलती थी, दक्षिण भारतीय खाने का भी काफी अच्छा अनुभव रहा, वहां पर नए-नए लोग भी आते रहते थे और अपने प्रेम और समर्पण से खाना बनाते और परोसते थे, यह सब मेरे लिए काफी नया था।


यह भी व्यावहारिक रूप से अनुभव हुआ कि यह 'मैं' है जो जीवन पर कब्जा कर रखा है, नहीं तो हम सब से संबंधित हैं, जब ही हम यह बोलते हैं मेरा भाई, मेरा माता, मेरा पिता, मेरा दोस्त, मेरा मकान, मेरा जागरण तो उस क्षण ही हमारा जो संबंध का धरातल रहता है वह दूषित हो जाता है और वहीं पर द्वैत पैदा लेता है और वही हमारी सारी समस्या का जड़ है, और यहीं पर असंभव प्रश्न जो है वह द्वैत पर ही सवाल उठा देता है कि "कौन है जिसे यह द्वैत का अनुभव हुआ?" या दूसरे शब्दों में 'वह जीवन क्या है जो द्वैत और अद्वैत दोनो से बेसार्थ मुक्त है?'


और यह असंभव प्रश्न उठाने से ही, 'मैं' की जो काल्पनिक सत्ता है उस पर सीधा चोट पड़ता है इसीलिए असंभव प्रश्न दो धारी तलवार है।


मुझे वहां रहते हुए यह दिखा की कैसे बहुत कम सुविधाओं में जीवन बिल्कुल आनंद में हो सकता है, कुछ गुणा भाग लगाकर के भी मैं देखा तो मेरी जो अपनी धारणा थी वह भी सारी टूट गई।


हम लोग सुबह-शाम रमण आश्रम भी भ्रमण करने के लिए जाते थे और उस आश्रम में मुझे कुछ ऐसा महसूस हुआ जिसे मैं कोई भी शब्द नहीं दे पा रहा हूं वहां पर कुछ ऐसी ऊर्जाएं हैं जो की बहुत काम करती है, आप जिस भी संदर्भ में वहां जाएंगे वह होने लगेगा आपके जीवन में।


मैंने यह भी पाया कि महर्षि, कृष्णमूर्ति इन सब ने जो भी बात बोली है वह एक ही है, थोड़ा बहुत तरीके में कुछ अंतर हो सकते हैं लेकिन मूलभूत रूप से चीज वही है क्योंकि चीज ही एक है।


यह भी अनुभव में आया की अक्सर ऐसा होता है कि जब हम अपने ओर आते हैं, जीवन में थोड़ा बहुत उस पार की झलक मिलती है तो उसके बाद हम Expert Comment देना प्रारंभ कर देते हैं, और वह हमें आधा रास्ता से ही भटका देता है और हम एक बुद्धिजीवी बन के रह जाते हैं, जिसका जीवन से कोई संबंध नहीं होता इसीलिए कुछ भी हो दृष्टि अपनी ओर रहे, और ध्यान को अवसर देते चलें।


यह भी समझ में आया कि किसी भी चीज को बताने के लिए लिखना और बोलना यह दोनों सर्वाधिक उपयोग में लाया जाता है, इसीलिए जस का तस बोलना और लिखना अपने आप में एक कल है।


साथ ही साथ धर्मराज जी के साथ काफी प्रश्न उत्तर भी चलते रहता था और उससे बहुत कुछ सीखने और समझने को मिल रहा था एक बिंदु ऐसी भी आई जहां यह बोध हुआ कि अक्सर प्रश्न बुद्धि से आती है और जो हमेशा उत्तर की आकांक्षा में रहती है, मैंने यह पाया कि वास्तव में कोई प्रश्न है ही नहीं, जब आप जीवन में अवलोकन को जगह देते हैं तो आप पाते है कि आपका प्रश्न स्वत ही गलाने लगा है और, वह इनसाइड ही प्रश्न और उत्तर दोनों है अगर प्रश्न और उत्तर जैसा कुछ होता हो तो।


एक बात और गहरी रूप से प्रवेश किया कि अक्सर कुछ चीज सयोग से नहीं होता है हमें लगता है कि यह मात्र सयोग से है लेकिन उसमें अस्तित्व की अपनी एक योजना होती है जिसे हमें नहीं पता रहता है, इसीलिए जो यह अवसर मिला है उसे बहुत लगन से इसमें बने रहना है।


मुझे काफी कुछ चीजों में स्पष्टता मिली, जीवन में एक नया धार आया जो कि अपना काम करने लगा है।


24 तारीख को सुबह में हम लोग नाश्ता कर रहे थे तो सर ने कुछ बातें बोले जो की काफी गहन रूप से मेरे अंदर प्रवेश किया, और एक सहज ही जिम्मेदारी का बोध हुआ।


वहा सारा कुछ अपने आप में एक जीवंत घटना थी, काफी कुछ चीज मैं भूल रहा हूं जो मुझे स्मरण नहीं आ रहा है इसीलिए यहां पर नहीं लिख पा रहा हूं।


मित्र एक और निवेदन भी करना चाहूंगा हमें नहीं पता सर शारीरिक रूप से कब तक हमारे साथ रहेंगे लेकिन जब तक है तब तक उनसे खूब सीखें यह अस्तित्व ने एक अवसर प्रदान किया है उसे बिल्कुल भी चुके ना, उनसे मिले व्यक्तिगत रूप से, देखें उनकी जीवन को, खूब सीखें, ऐसे लोग की सानिध्य हमें बहुत कम ही मिलती है इसीलिए इसका जितना हो सके उतना लाभ उठाएं।


हमारी बहुत सारी जन्म द्वैत की जो यह दुश्चक में फंसकर रह गई लेकिन अब भी मौका है और अस्तित्व ने एक अवसर भी प्रदान किया इस अरयानक मंच के माध्यम से इसीलिए छलांग लगा दीजिए।


जागरण को जीवन में अवसर दें और जागते चलें🙏


अस्तित्व का आभार और साधुवाद! 🙇

____________________ बिक्रम झा

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