यह अस्तित्व पहले से ही परम शुभ और परम करुणा से भरा हुआ है। जब हम जीवन में कुछ भी विसंगत पाते हैं तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह हमारे लिए अशुभ है। जिससे हम विसंगति समझते हैं, वह जीवन में एक ऐसा अवसर है जिससे कि हमारे अंदर पात्रता विकसित हो सके, जिससे कि हम जाग सकें।
एक सूफी कहानी है। एक राजा ने सोचा कि राजकुमार का राज्याभिषेक करने से पहले उसको जीवन में कुछ सीखना पड़ेगा, उसमें वह क्षमता और योग्यता होनी चाहिए कि वह राजा बन सके। राजा ने राजकुमार को एक दूसरे राज्य में भेजा और उसकी कहा कि वहां जाकर के एक रत्न, जो हमारे राज्य का है और जिसको चोरी किया गया है, उसको तुमको वहां से वापस लाना है।
उसको ऐसे वस्त्र दिए गए, ऐसी वेश भूषा बनाई गई ताकि उसकी पहचान आसानी से ना हो सके। वहां जाकर उसे एक और व्यक्ति मिला, वह भी इसी तरह के उद्देश्य से वहां आया था, दोनों में दोस्ती हो गई। वहां पर वह कुछ खा करके जब वह सोए तो उसके उठने के बाद वह सब कुछ भूल चुके थे कि वे वहां क्यों आए हैं, और वह कौन हैं। उस विस्मृति से अब यह उनका खुद का नगर हो गया।
वह व्यक्ति जिसने रत्न चुराया था उसको भी यह पता चल गया कि यह राजकुमार हैं, और यहां किस लिए आए हैं। उसने भी सारे यत्न किए की वह वहीं के सब तरह के विधि विधान सीख लें। उसने राजकुमारों को वही बातें सिखाई जो वह सीख करके आए थे, की किसी और नगर में तुम्हें अगर जाना होगा, तो वहां पर क्या सावधानी बरतनी चाहिएं।
जिस नगर से राजकुमार आया था, उन्होंने कुछ सूत्र छोड़े हुए थे राजकुमार के अंदर जिससे कि वह कुछ संदेश भेजना चाहें तो भेज सकते थे। एक दिन जब राजकुमार सोकर के उठा तो उसके अंदर एक संदेश गूंज रहा था कि "जागो"। उस संदेश ने राजकुमार पर इतना गहरा प्रभाव डाला कि वह धीरे-धीरे जागने लगा। जैसे जैसे जागना हुआ, तो उसको सही बात यथावत दिखने लगी। जो कुछ भी उसको नए नगर में सिखाया गया था उसके प्रति वह होश में आने लगा। उसके अंदर यह भी संदेश गुंजा की उस शैतान के साथ जाकर के रहो जिसके पास रत्न है, अपनी उपस्थिति उसके पास रखो।
जब राजकुमार उस शैतान के साथ रहने लगा, तो एक दिन वह शैतान ही सो गया। राजकुमार ने जब देखा कि शैतान सो गया है, तो वह रत्न लेकर के अपने वास्तविक गृह नगर लौट गया। यह सूफी कहानी हमारे जीवन की ही गाथा है। हम समझते हैं कि यह हमारा गृह नगर है, पर ऐसा है नहीं। यदि अभी भी हम बुद्धि से सोच रहे हैं कि इस कहानी का यह अर्थ हो सकता है, तो यह वही शैतान मन है जो हमारे अंदर काम कर रहा है।
यहां हमें कुछ रत्न पाने के लिए भेजा गया था, कुछ सीखने के लिए भेजा गया था। जीवन का जो अनमोल रत्न है, उसे खोजने के लिए इसी नगर में आना पड़ता है, पर जब हम यहां आते हैं तो हम भूल जाते हैं कि हम यहां क्यों आए थे। हमको बताया जाता है कि यही हमारा गृह नगर है। हमको बताया जाता है कि कहीं दूर कोई निर्वाण, समाधि, मोक्ष का कोई रत्न है, जिसको पाने के लिए हमको बहुत सारी तैयारी करनी पड़ेगी। हमारे आसपास जो हमारे संगी साथी हैं वह भी इसी तरीके से जी रहे हैं, पर कभी-कभी एक संदेश गूंजता है हमारे अंदर "जागो"।
इस लोक और उस लोक दोनों के भ्रम से जो मुक्त कर दे, ऐसा जो सामर्थ्य है, वह को पहले से ही फला फूला अघाया है, उस जीवन को उतरने का अवसर देना, वह कौशल वही अनमोल रत्न है। एक ही उपाय है यह मन का जो भी क्रियाकलाप है, उसके प्रति जागो, होश को अवसर दो। इस मन ने बहुत से राजकुमारों को बुद्धू बना के रखा हुआ है। जरा सी भी कौंध आती है, तो जागो। यदि कुछ है जो हमको इस सम्मोहन से परे ले जा सकता है, तो वह है चुनाव रहित जागरण।
जो यह अभी भी कहा जा रहा है, उसका आलोचक बनना या प्रशंसक बनना, दोनों का कोई मोल नहीं है। प्रशंसा या आलोचना हमें इसी जगह पर बनाए रखने की एक साजिश है। अभी यह सुनते हुए होश यदि नहीं घट रहा है, तो फिर हो सकता है कि यह भी उसी शैतान के काम करने का ही एक सुक्ष्म ढंग है। शैतान यानी मन, ध्यान का भी वर्गीकरण करने लग जाता है, ध्यान को भी अनुभव में बांधने लग जाता है। जो कुछ भी यह मन प्रस्तुत करता है, यदि उसके प्रति चुनाव रहित जागरण है, तो एक दिन आप पाएंगे कि यह शैतान मन सो जाता है। एक विषैला जीव यदि सो भी जाता है, तब भी वह उतना ही घातक होता है।
हमें अपने अंदर बैठे मन रूपी शैतान से बहुत सावधान रहना चाहिए। यदि आप इससे लड़ेंगे तो भी यह जीत जाएगा, और यदि मित्रता करेंगे तो भी यह झांसे में ही ले लेगा। मन से लड़ना या मन से मित्रता दोनों ही इसको शक्ति प्रदान करता है, इसको और मजबूत करता है। उपाय है कि जो है जैसा है, उसके प्रति जागरण को अवसर देना। सारा दुख रचने वाला यही मन है, बहुत सारे उपाय हैं सुझाव हैं, या मौन है, जो भी यह मन प्रस्तुत करता है, उन सबको एक मुस्त देखिए। एक दिन आप पाएंगे की यह मन हमेशा के लिए सो गया। जैसे ही यह सोता है, तो वह जो आपका रत्न है वह तो आपको मिला ही हुआ है। निश्चित ही ऐसा जीवन उपलब्ध है जो अपने से ही फला फूला और अघाया है।
यदि बात समझ में आ गई, होश में पांव जमने लगे, तो किसी भी तरह की आध्यात्मिक प्रक्रिया से बिल्कुल मुक्त हो जाइए; जो मौलिक बात है, वह है होश। संबंधों में ही अपनी और दूसरों की असलियत पता चलती है। जो शत्रु है वह मित्र की शक्ल में आता है, जो विनाश है वह आपके उत्थान करने की शक्ल में आता है।
देखिए मन कैसे काम करता है, क्योंकि वह भी यही बात करता है कि होश में आइए, जागिए, ध्यान करिए। बस जो घट रहा है उसमें बिना चुने उपस्थित रहिए। मन के कोलाहल में खो जाना बहुत आसान है। बहुत होश पूर्वक सुनने में यह संदेश सुनाई पड़ता है कि "जागो"। आप अपने जीवन में देखिए की क्या वास्तव में जागरण आपके जीवन में जगह ले रहा है? सत्संग का इतना ही उद्देश्य है कि हमारे आपके बीच में जागरण की घटना को घटने का अवसर दिया जाए।
हमारे पास केवल आश्वासन है कि जीवन में कभी फलना फूलना अघाना होगा, पर वह जीवन क्या है जो पहले से फला फूला अघाया हुआ ही है? जो भी हम कर रहे हैं उसमें फलना फूलना अघाना अभी घट रहा है, या उसमें कोई आश्वासन है? यदि ऐसा कुछ है जिसको पाने से जो अभी जीवन की गुणवत्ता है, उसमें थोड़ी बढ़ोतरी हो जाएगी, तो आप समझिए कि अभी जीवन में आपूर तृप्ति नहीं है। मैं और मन की संरचना में कभी भी आपूर तृप्ति हो ही नहीं सकती है। ज्ञान कभी भी पूर्ण नहीं हो सकता, उसमें कभी भी कुछ जोड़ा या घटाया जा सकता है, और हम आप जो हैं वो ज्ञान सूचना से ही बने हैं।
क्या कोई जीना ऐसा है जो सहज फला फूला अघाया हुआ ही है? इसका उत्तर आपको नहीं आएगा, पर उत्तर जीवन में उतर जाएगा, और उत्तर जब जीवन में आएगा, तो आप समाप्त हो चुके होंगे। यही मूल शिक्षा है कि हम आप हटें और जो पावन है वह जीवन में जगह ले सके।
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Ashu Shinghal
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