top of page
Image by NordWood Themes
Image by NordWood Themes
Ashwin

फूले फलें अघायें - ध्यानशाला भोर का सत्र, 20 मई 2024

ध्यानशाला भोर का सत्र, 20 मई 2024


फूले फलें अघायें।


एक होता है भूतपूर्व दर्शन जो भूतकाल के निष्कर्षों पर आधारित होता है, और एक होता है अभूतपूर्व दर्शन, जिसमें भूतकाल की स्मृति अभी जो घट रहा है उसको मलिन नहीं करती है, जो अंतर्दृष्टि पर आधारित होता है।


मैं सांयोगिक हूं, पर अपने आप को मैं आतंत्यिक, स्थाई, या निरपेक्ष समझता हूं, यह एक बहुत बड़ी भूल है। वह जीना जिसमें कम से कम त्रुटि हो, उसको हम जीवन नाम दे सकते हैं।


जिस तरह से हम जी रहे हैं, उसमें कुछ ना कुछ जीया जा चुका है, और कुछ अभी जीना बाक़ी है। एक तो हम जीवन को अभी भौतिक घटा हुआ जान रहे हैं, और दूसरा है मानसिक रूप से मेरे साथ कुछ घटा हुआ जान रहे हैं। हमारी जीवन भर फलने फूलने अघाने की तैयारी चल रही है कि कभी फूलेंगे, कभी आपूर होंगे।


क्या हम आप किसी निष्कर्ष पर आ रहे हैं, या जो समझ में उतरा है, वो जीवन में शामिल होता जा रहा है? आपको प्यास लगी है, और आप सोच रहे हैं कि कहीं और पानी मिल जायेगा, उसकी योजना चल रही है। जब पानी पी लिया, तो वो बिलकुल भिन्न बात है, उसकी तृप्ति फिर जीवन को निर्धारित करेगी।


हमारी फलने फूलने तृप्त होने की कोई योजना, निष्कर्ष के रूप में चल रही है। जीवन योजना प्रक्रिया में रहा, ना की वो फल फूल करके जीया जा रहा है।


जीवन में अभी फलने फूलने की योजना चल रही है, तो यह निष्कर्ष है, यह अंतर्दृष्टि नहीं है? निष्कर्ष है तो फिर ध्यान साधना पड़ेगा, और यदि अंतर्दृष्टि है तो फिर जीवन में सहज ही ध्यान घटेगा। अंतर्दृष्टि में सोचना नहीं पड़ता है। रास्ते में कुछ देख लिया की कोई गड्ढा है सामने, तो आप उससे बचकर के निकल जाएंगे, जो जीवन में सहज उतर गया वह अंतर्दृष्टि है, उससे जीवन धारा बदल गई। यदि आप निष्कर्षों में हैं तो एक और सिद्धांत बना लेंगे, और यथार्थ को अवसर नहीं मिल पाएगा।


इस सत्संग का बिना निष्कर्ष के घटना क्या है?


एक व्यक्ति एक साधु के पास ध्यान सीखने के लिए गया। साधु ने कहा कि यह जो दो घड़े हैं इनमें सामने जो पानी रखा है उसे भर कर के ले आओ, और तब तक भरते रहो जब तक मैं उसको मना ना करूं। उनमें से घड़ा बिना पैंदी का था, और दूसरा आसानी से भर गया। हम बिना पैंदी के घड़े को भरने में ही लगे हुए हैं। जानते हैं की पानी इसमें भर नहीं रहा है फिर भी भरते जा रहे हैं, एक गति बन गई है। ये गति अंतर्दृष्टि को हटा कर, किसी निष्कर्ष पर ले आती है।


मन एक प्रजातांत्रिक घटना है, हम एक दूसरे को देख कर चलते हैं, एक दूसरे से प्रभावित होते रहते हैं। जीवन में फलना फूलना अघाना तिल भर भी नहीं है, पर आडंबर भरपूर है, पात्र चमकाया हुआ है। हम पात्र चमकाए जा रहे हैं, ओहदा भरा हुआ है, पर जिंदगी कहां है? वास्तव में जिंदगी ऐसी होती ही नहीं है। भिखारी हो या सेठ हो, दोनों बिना पैंदी का पात्र लेकर के ही घूम रहे हैं।


हम ये भूल ही गए हैं कि इस पात्र में जल नहीं भर सकता है। बचपन में जिंदगी भरपूर थी, अब उम्र के साथ साथ अनुभव भरता जा रहा है पर जीवन घटता जा रहा है। दिमाग में कोई पैंदा नहीं है, उसको ज्ञान या अनुभव से भरा नहीं जा सकता। जहां से भरना छूट जाता है, वह अंतर्दृष्टि है।


हम कहते हैं कि पैसा बेकार है पर उसे बहुत जकड़ कर पकड़ा हुआ है। हम जीवन में अपनी मौज से कुछ कर कर नहीं सकते हैं, और कहते हैं कि जगत मिथ्या है। जो निष्कर्ष जीवन में लागू नहीं हैं, वो विष है, उसे अंगार की तरह छोड़ दीजिए। यदि बौद्धिक स्तर पर केवल चर्चा मात्र है, तो वो कोरी गप्प है। हम सोचते हैं जरा गृहस्थी संभल जाए फिर अध्यात्म में जायेंगे, ऐसा कभी नहीं होगा। इस जीवन में किसके बीबी बच्चे खुश हुए हैं, हमने बच्चों, माता पिता को धोखे में रखा हुआ है।


चन्ना ने बुद्ध से कहा मैं तुम्हारे पिता की उम्र का हूं, महल क्यों छोड़ते हो? बुद्ध ने कहा की वहां आग लगी हुई है। हम समझते हैं कि वो वाला पानी भर लूं, उससे जीवन में खुशी आ जाएगी, पर बात पानी की है ही नहीं, बात तो पात्र की है। अगर समझ से कर्म नहीं घटित हो रहा है, तो उसे अंगार की तरह छोड़ दीजिए।


वास्तव में घड़ा तो पहले से ही भरा हुआ है, जो भी तुम जतन करते हो, वह बिन पैंदी के घड़े में पानी भरने जैसा है। जीवन अभी भी भरपूर फूला फला अघाया हुआ है, जीवन या संबंध के तल पर कभी भी कोई सुधार नहीं हो सकता है। जीवन कभी और थोड़ा और भर जाएगा, ये कोरा भ्रम है।


एक दृष्टि है कि अभी कुछ और भर सकता है, और दूसरी दृष्टि है कि जीवन पुर्णम इदम है, और साथ ही झलक भी रहा है। दूसरी दृष्टि भरपूर जीवन की झलकन है, प्रेम, अभिव्यक्ति उमड़ ही रही है, और उसमें हमारी कोई भूलिका नहीं है।


अंतर्दृष्टि से भरा जीवन क्या है, निष्कर्ष से भरा जीवन क्या है? अंतर्दृष्टि यानी मौज का वह होना, जो सहज जीवन में घटे। हमें प्रार्थना करके उसकी करुणा हासिल करने की कोई जरूरत नहीं है, पहले से ही करुणा भरपूर मिली ही हुई है।


अध्यात्म के क्षेत्र को खाली रखिए। आध्यात्मिक हो गए, ज्ञान इकट्ठा कर लिया, वेदांत जान लिया, गुरु को सुन लिया, यानी यह अहंकार में और बड़ोतरी हो गई। अध्यात्म के नाम पर दिमाग को ज्ञान से मत भरिए। अंतर्दृष्टि वो है, जो बनकर के जीवन में पच गया हो।


जो हम कवायद कर रहे हैं अध्यात्म के नाम पर, कहीं वह बिना पैंदी का घड़ा तो नहीं है। जीवन में सब कुछ पा लिया, अब थोड़ा अध्यात्म भी करके देख लें, कुछ ज्ञान हासिल कर लें, ये अपने को ही मूर्ख बनाने जैसा है।


जो जीवन अभी जीया जा रहा है, क्या उसमें कुछ जोड़ा जाने की जरूरत है? यदि हां, तो इसका अर्थ है कि अभी होश में आने की जरूरत है। जो भी जैसा भी, अभी आपका तथ्य है, उसको लेकर के यथावत रहिए। यदि यथावत निदान हो गया, तो निदान में ही समाधान हो जाता है।


क्या जीवन फूला फला अघाया है, या अभी उसमें अभी कुछ शेष है? वह जीवन क्या है जो बिना फूला, बिना अघाया, से मुक्त है? बिना फले फूले जीवन से, मुक्त जीवन क्या है?


क्या अभी जो रिश्ता है वो अभी फूला फला अघाया नहीं है, तो उसको यथावत देखिए।


क्या जीवन अभी फूला फलाया अघाया है?

________________________

Ashu Shinghal

0 views0 comments

Комментарии


bottom of page