ध्यानशाला भोर का सत्र, 22 मई 2024
एक बार एक व्यक्ति से जीसस ने कहा कि जिंदगी में मछलियां ही पकड़ते रहोगे या कुछ जानोगे भी जीवन के बारे में। कुछ देर बाद खबर मिली कि उस व्यक्ति का पिता मर गया। जीसस ने उससे कहा कि मुर्दों को मुर्दे को दफनाने दो, तुम चलो मेरे साथ। जब हम ध्यान को बैठते हैं तो मन भी ऐसे ऐसे श्रेष्ठ विचार, महत्वपूर्ण काम, या ऐसी कविताएं, सामने लाकर रख देगा कि कहां ध्यान में समय बर्बाद कर रहे हो। जब मन खाली होता है तो, या तो अच्छे - अच्छे विचार प्रकट करता है या भय प्रकट करता है, पर दोनों में ही भटकाव है। मन पूरी कोशिश करता है कि आप उस तरफ ना जाएं, क्योंकि अगर आप उस तरफ मुड़ गए तो मन का पूरा साम्राज्य समाप्त हो जाएगा।
मुर्दे मुर्दे को दफना देंगे यानी जितनी भी महत्वपूर्ण चीजें हैं, कुछ ना कुछ उसका हो जाएगा, हम उसमें क्यों रुचि ले रहे हैं? जो चीज हमें महत्वपूर्ण सी लगती है, उसके लिए हम अपना ध्यान क्यों खंडित कर रहे हैं? जो असल जीवन को अवसर दिया जाना है, उसमें हम क्यों विघ्न डाल रहे हैं? नाम, रुपया, प्रसिद्धि यह सब मन का ही एक रूप है, जो मिलने लगेगा, या मन हमको डराने लगेगा, मन के इन सारे क्रियाकलापों से हमें सावधान रहना चाहिए।
हम वही कहते हैं जो हमारे अंदर चलता रहता है, और हमारे अंदर मैं ही चल रहा है। पर एक ऐसा जीवन भी है जो फूला फला अघाया हुआ ही है, जिसमें हमारी कोई भूमिका है ही नहीं, जो अपने से चल रहा है। हमने किसी को कपड़ा दिया है, तो उसके बारे में बात करके उसका पूरा श्रेय लेना चाहते हैं। इसी तरह से हम समझते हैं कि मैंने इतना जतन किया है, इसलिए तो मेरे जीवन में शुभता, ध्यान घट रहा है। आप असंभव सवाल उठाते हैं और तुरंत ही मैं आकर के कुछ करना शुरू कर देता है।
यह बात समझ में आ गई कि मैं कभी भी फूला, फलाया नहीं हो सकता, पर फिर तुरंत ही मन कोई बात पकड़ के ले आयेगा कि एक दिन हमारे जीवन में निस्वार्थ प्रेम उतर जायेगा, कि हम बुद्धत्व की तरफ जा रहे हैं, एक दिन सारा भ्रम मिट जायेगा; अब फिर से ये अपने दिए हुए कपड़े की बात ही चल रही है।
यहां बस देखिए की कपड़े की बात चल रही है, और जाग जाइए उसके प्रति। बनावटी और सत्य में कोई लिंक नहीं जुड़ सकता है, हमारी कोई भी गतिविधि उस तक नहीं पहुंचा सकती है। यह एक बहुमूल्य समझ है, इससे आपकी सारी गतिविधियों में तत्क्ष्ण एक अमूल रूपांतरण घटित हो गया। मैं कुछ नहीं कर सकता हूं, यह जानने मात्र से आपका रुख बदल गया, आपकी ऊर्जा ने एक नया मोड़ ले लिया। अगर मोड़ नहीं लिया, तो समझिए कि यह एक नया निष्कर्ष है, यह अभी अंतर्दृष्टि नहीं बनी है।
मोड़ लेने का मतलब है कि ना काम भोगें ना राम भोगेें। काम, क्रोध, विचार है तो उसकी कोई निंदा या स्तुति नहीं है, बस जागरण की उपस्थिति के सिवा और कुछ नहीं है। यानी आप बनते हो, वहां अंतर्दृष्टि कौंधती है, और उसके साथ आप विसर्जित हो जाते हो। कौंध आने में और उस तरफ छलांग लगाने में कोई भेद नहीं है, कोई दूरी नहीं है। आप जो भी कर रहे हैं वहां कौंध आई और वहां इस तरफ का रुख टूट गया। यदि आप उसको रोकना चाहेंगे, तो मन को उसमें बड़ा मजा आने लगता है। मन यानी मैं, या तो करने में रुचि लेता है, या नहीं करने में रुचि लेता है। संसार या सन्यास इनमें ही मन की गति होती है।
भोग में प्रीति होना या योग में प्रीति होना, संग में प्रीति होना या संग से भागना, दोनों में कोई भेद नहीं है। जैसे ही कौंध आ जाए, उसके बाद कोई क्रिया नहीं होनी चाहिए, सिवाय कौंध के; तो फिर बिना आपके कुछ किए जीवन उसमें उतरना शुरू हो गया, पुराने महल ढलने शुरू हो जाएंगे। कौंध का आना या पता चलना, अपने आप में पूरी कीमिया है। आपने कुछ भी उसके साथ छेड़छाड़ की, तो आप चूक जाओगे, तो फिर आप फलने फूलने की योजना में जा रहे हो; यानी फिर ना फलने ना फूलने वाले जीवन की आहुति नहीं दी गई।
हमारे जीवन में कई बार समस्याएं आती हैं और हम उसको सुलझाने में लग जाते हैं पर इससे होगा क्या, हो सकता है की आप मंदिर के द्वार पर खड़े होकर के जो प्रसाद के रूप में मिला ही हुआ है, उससे आप वंचित रह जाएं। प्रसाद का आपको तभी पता चलता है, जब वह जीवन में मिल ही जाए।
यदि आप समर्थ भी हैं, फिर भी छेड़छाड़ नहीं करते हैं जो हो रहा है उसमें, तो आप निसर्ग या बोधातीत को जीवन में अवसर दे रहे हैं। कई बार आप पर कोई आरोप लगाया जाता है और आप उसका प्रतिरोध नहीं करते हैं, तो हो सकता है कि वहां ध्यान को आप अवसर दे रहे हैं। जो भी घट रहा है उसमें होश महत्वपूर्ण है। ऐसा मेरा पक्ष है, इसकी बजाय जो भी है, उसका एक चुनाव रहित अवलोकन क्या वहां पर है कि ऐसा घट रहा है।
यदि आप प्रतिकार कर रहे हैं, आपकी ऊर्जा अपने प्रबल पक्ष को प्रस्तुत करने में जा रही है, तो आपके लिए चुनाव रहित जागरण को अवसर देना बहुत मुश्किल हो जाएगा। आपका पक्ष बहुत मजबूत है फिर भी आप उसको सिद्ध करने की कोशिश नहीं कर रहे हो, तो आपके जीवन में ध्यान जीवन से अनुस्यूत या सघन हो जाएगा। मतलब काल में कालातीत को कमा लिया, एक अलग छलांग लग गई जीवन में। इसी तरह जब आपको लगता है कि आप गलत हैं, तो उसकी भी निंदा मत करिए, आत्म ग्लानि में मत जाइए; वहां भी चुनाव रहित जागरण का अवसर दे दीजिए कि "ऐसा है", तो जीवन में आपने निसर्ग के लिए द्वार खोल दिया।
निरपेक्ष रूप से आप किसी को भी सही या गलत नहीं कह सकते हैं। जो भी अभी घट रहा है, क्या उसका कोई ऐसा दर्शन संभव है, जो मेरे द्वारा नहीं किया जा रहा है? थोड़ी सी देर भी यदि जो है उसको वैसा ही देखा जा सका, तो हम पाएंगे कि जीवन में अनायास ही जागरण फैल गया है; यह बात ही महत्वहीन हो गई कि आप सही हैं, या गलत हैं।
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Ashu Shinghal
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