हमारी कथनी और करनी में भेद है, क्योंकि जो हमारा निर्णय लेने वाला यंत्र है, उसमें ही त्रुटि है। उसके निर्णय सम्यक नहीं होते, इसलिए कथनी और करनी में भेद होना स्वाभाविक है। आधे सच की सूचना, कोई सूचना न होने से भी बदतर है, और यदि केवल 10% सच ही प्रकट है, तो यह लगभग झूठ है।
जिस जीवन के बारे में हमें जानकारी मिल रही है, क्या वह सूचना वास्तविक है। आपको क्या वास्तव में पता है कि ईश्वर, स्वर्ग, तीर्थ जैसा कुछ होता भी है? क्या हम सच में जानते हैं कि दूसरा व्यक्ति दुष्ट है? क्या हम जानते हैं कि जो जीवन जिया जा रहा है, वही जीवन का धरातल है? क्या ऐसा तो नहीं है कि जैसा हम जी रहे हैं, उसके लिए हमें तैयार किया गया है? आपको लगता है कि आप किसी के पति हैं, किसी परिवार के सदस्य हैं, कोई पद है, या पैसे हैं, या नहीं हैं, क्या यह सब यथार्थ के धरातल पर सच है? इसलिए जो भी हम निर्णय ले रहे हैं, या ज्ञान प्रदर्शन करते हैं, वह सब झूठ हो सकता है।
क्या वास्तव में हम जानते हैं जीवन को, या जान सकते हैं जीवन को? या केवल एक विचार है कि जीवन क्या है? हमको कैसे पता है कि मैं जीवन का आधार है? क्या हम जीवन को संवार रहे हैं, या उस पर आघात कर रहे हैं?
झूठ जीवन की संभावनाओं को नमक की तरह गला देता है, जब आप कहते कुछ और हैं, आशय कुछ और होता है, और करते कुछ और ही हैं। अपने झूठ के प्रति सजग रहिए, बच्चों को ऐसा कुछ मत बताइए जीवन के धरातल पर, जो आप नहीं जानते हैं। जो हम धार्मिक आध्यात्मिक जगत में कह रहे हैं, क्या वह वास्तव में हम जानते हैं? यदि आप ईमानदार हैं, तो 99% समय आप चुप हो जाएंगे। अध्यात्म के क्षेत्र में बहुत सारे दर्शन हैं, जो हम नहीं जानते हैं, जाना भी नहीं जा सकता है, पर हम वही जुगाली करते रहते हैं। यह हमारे अंदर एक ऐसा भ्रम पैदा कर देता है कि धर्म को भी जाना जा सकता है। जो हमारे कल्याण के लिए है, वह समझ विनाश का कारण बन जाती है।
बच्चों को वह कुछ मत कहें जो आप खुद नहीं जानते हैं। इससे बच्चा तैयार रहेगा की जीवन में कुछ ऐसा है जो जाना नहीं जा सकता, जिसको जानने की जरूरत ही नहीं है। हमारे अंदर ही आग्रह है कि मैं सब कुछ जानता हूं, या जान सकता हूं, जैसे कि मैं जीना जानता हूं, या जीवन जाना जा सकता है। मात्र जो जीने की घटना है, उसको जाना नहीं जा सकता है। जीवन के संबंध में जो भी सूचना है, जो भी रिपोर्टिंग है, उसके प्रति बहुत सावधान रहिए।
अष्टावक्र जनक से कहते हैं कि तुम्हारे बंधन का एक ही कारण है कि तुम समाधि का उपाय करते हो, जीवन का अनुष्ठान करना ही बंधन है। यदि आप जीवन या संबंध का अनुष्ठान कर रहे हैं, तो एक आभासीय सत्ता (क्लोन) निर्मित कर रहे हैं। क्या ऐसा संभव है कि हम अपने प्रति झूठ ना बोलें, खुद से झूठ ना बोलें, हमारे कथनी और करनी में भेद न हो? क्लोन जब इस बात को समझता है, तो कहता है कि झूठ बोलना पाप है। यथार्थ के धरातल पर झूठ बोलना, यानी यथार्थ के जीवन से दूर हो जाना है। यदि आप जो भी तथ्य है उसके साथ रहते हैं, तो वह जो भी झूठ से निर्मित हुआ है, वह गल जाएगा।
यदि समाधि का अनुष्ठान नहीं रहता, तो वह जो समाधि का अनुष्ठान करने वाला था, वह भी बचा नहीं रह सकता। जिस क्षण यह अंतर्दृष्टि हो गई की समाधि, समाधि करने वाला, और समाधि की प्रक्रिया, यह त्रिपुटी ही आभासीय झूठ है, वही समाधि है।
एक अज्ञेय का निर्दोष क्षेत्र है जो प्रसाद में मिला ही हुआ है, क्या हम उसके प्रति सारी छेड़छाड़ से मुक्त हो सकते हैं। वो अज्ञेय का क्षेत्र ऐसा है, जो न जाना जा सकता है, और ना जानना चाहिए। ये जो फूल है उसके बारे में हमें कुछ सूचनाओं हैं, पर वह वास्तव में क्या है, उसको हम नहीं जान सकते हैं। जितना आवश्यक है उतना जानना, और जीवन का क्षेत्र अज्ञेय में रहने देना, तो फिर अवसाद नहीं होता। जब यह बात सघन हो जाती है कि सब कुछ जाना जा सकता है, तो अवसाद की संभावना बढ़ जाती है।
जब हम झूठ बोलते हैं, तो झूठ ही हो जाते हैं। जो भी प्रक्रिया आपके अंदर चलती है, वही आपको निर्मित कर रही है। यदि आप दूसरे को छल रहे हैं, तो आप ही छ्ल हो जाते हैं, जीवन से उखड़ जाते हो। गलत रिपोर्टिंग आपको जीवन के धरातल से उखाड़ देती है। यह जीवन जो मिला ही हुआ है, उसके ऊपर जो हम चढ़ बैठे हैं, उसका कैसे अंत हो? जीवन को लेकर के जो मेरी गलत रिपोर्टिंग चल रही है, उससे मुक्त होकर के जीना क्या है? आंकड़ों के आधार पर जो आग्रह, जो छवि आपने बना ली है किसी के बारे में, वह घटना उतनी सी सीमित नहीं है। थोड़े से आंकड़ों से किसी भी जीवंत घटना को तय नहीं किया जा सकता है, और व्यक्ति अथाह घटना है। झूठी रिपोर्टिंग से मुक्त होकर के जीना क्या है?
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Ashu Shinghal
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