कुर्ते का सीधा पहनना क्या है?
वह उपस्थिति जो हम नहीं साध रहे हैं, वो कुर्ते का सीधा पहनना है। खुद को बटोर करके एक तरफ रख दीजिए, और निसर्ग को प्रवेश होने दीजिए, यही सबसे शुभ कीमिया है। यह दुनिया उल्टे कुर्ते को सीधा कहती है, कि आप अच्छा दिखिए, भीतर आप आनंदित हैं या नहीं, उसका कोई महत्व नहीं है। आप दुनिया की परवाह मत कीजिए। सच्ची शालीनता की बात कुछ और ही होती है, ऊर्जा ऊर्जा को पकड़ लेती है, फिर औपचारिकता की कोई भूमिका नहीं है, जो हृदय से आए वही करिए।
साधु का मतलब जिसकी उपस्थिति पावन है। जीवन में कृतज्ञता के लिए अनेक अवसर मिल जाते हैं, बस कृतज्ञता का भाव महत्वपूर्ण है। हमारे विचार एक ही ढर्रे में चलते हैं, उनके प्रति सजग होइए।
बुद्ध एक गांव गए थे। एक बच्चे ने मां से पूछा तुम्हारे हृदय में कौन है? मां ने कहा भगवान हैं। बच्चे ने पूछा क्या वो सबके हृदय में हैं? मां ने कहा हां। बच्चे ने फिर पूछा की वो सबके हृदय में क्यों हैं, मैं क्यों नहीं हूं सबके हृदय में? मां ने कहा इसका उत्तर वो ही दे सकते हैं। बच्चे ने यही सवाल बुद्ध से पूछा।
बुद्ध ने कहा क्योंकि "मैं नहीं हूं"। बच्चे ने पूछा जो नहीं होता है, तो क्या वो सबके हृदय में व्याप्त हो जाता है? बुद्ध ने कहा जो नहीं है वही सर्वदा व्याप्त है। बालक कहता है कृपया मुझे "नहीं" कर दीजिए। बुद्ध ने बालक के सर पर हाथ रखा और कहा, कुछ होने की तुम्हारी यात्रा समाप्त हुई, कुछ ना होने में तुम्हारा स्वागत है। बुद्ध कहते हैं कि मेरा यह पुत्र सोत्तापन को उपलब्ध हो गया है।
देर सवेर सभी सोत्तापन को उपलब्ध हो ही जाते हैं, और फिर उसकी कोई जल्दी भी नहीं है, कोई चिंता भी नहीं है। एक दिन हमारे होने का जो भ्रम है, वो सबीज समाप्त हो ही जायेगा, होना ही है, इसलिए जैसे ही होश आए, उठिए और चरेवैती चरेवैती।
जब हम साधु कहते हैं, तो हम पूरी परंपरा को साधु कहते हैं, हम सभी परिस्थितियों को साधु कह रहे हैं, जिसे हम जानते हैं या नहीं जानते हैं। जैसा गाना आता है गाइए, पंछी आता है गाकर चला जाता है, वो कुछ नहीं सोचता उसके बारे में।
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