कुछ नहीं होकर, या ना कुछ होकर के भी जीना क्या है?
असंभव प्रश्न से उत्पन्न समाधान की किरणें सारी मनुष्य चेतना में फैलती हैं।
एक अभिनेत्री जिसने जीवन में सब कुछ पा लिया था, उसने कहा कि मैं वापस "कुछ नहीं" होना चाहती हूं। कुछ होना या कुछ बनना अपनी ही छाती में तीर मारने जैसा है।
मैं का मतलब ही है रीता या ओछा होना, भीतर दीनता या दरिद्रता से हम बने हैं, हमारी बनावट ही दीनता, बेजान, यानी खंडित होने से बनी हुई है। यह भली भांति जानने मात्र से ही जीवन की गति ठीक दूसरी ओर हो जाती है।
यदि थोड़ा सा भी विवेक बाकी रह गया है, तो हर सफलता के अंत में व्यक्ति खोखला हो ही जाता है। जिस चीज को भी आप पकड़ते हैं वो फिर आपको पकड़ लेती है। मुझे कुछ नहीं होना है, ये कोई साधना नहीं बना लीजिए, नहीं तो ये भी आपको पकड़ लेगी। बेहतर है कि सीधे विवेक को उत्पन्न हो जाइए।
बहुत सारे लोग तो गुरु होना चाहते हैं, वह गहरी आत्म हीनता की ग्रंथि से ग्रसित हैं, या फिर पैसे, शक्ति को अर्जित करके हम कुछ होना चाहते हैं। जो शिष्य होना चाहता है वह भी एक तरह की आत्म हीनता है कि कोई ठोस सहारा मिल जाए, मुझे कुछ अन्वेषण ना करना पड़े।
कृष्णमूर्ति जी ने कहा है कि सुखी वही है, जो कुछ नहीं है। कुछ नहीं होकर के जीना क्या है? इसको भी कोई सिद्धांत या साधना नहीं बना लेना चाहिए।
सवाल उठाइए कि कुछ नहीं होना क्या है?
कुछ उत्तर आया तो आप कुछ बन गए। इस प्रश्न के सही रूप से उठाने मात्र से ही जो भी आप हैं, क्या उस सारी बनावट में होश नहीं फैल गया?
कुछ बनना दिखाता है, यानी भीतर खोखलापन है। कुछ ना होना क्या है? कुछ ना होने में जो आपका "होना" है, वो प्रकाश में आकर के स्वाहा होने लगा।
झेन में एक क्वान दिया जाता है कि आप अपना वह चेहरा खोज करके आओ जो आपके जन्म लेने से पहले था? इसका उत्तर उधार ना ले लें कि मैं ही मर गया, क्योंकि आप मरने का नाटक कैसे कर सकते हैं?
ना कुछ होकर के जीना क्या है? यदि कुछ उत्तर आ गया तो फिर अभी मैं बचा हुआ हूं। यह कीमिया यदि सही से उतर गई, तो यह मुझे पूरा का पूरा पोंछ देगी।
आप साधु हैं या शैतान हैं जो भी हैं, वो यदि नैसर्गिक रूप से प्रकाशित है, तो यही सम्यक यज्ञ है।
असंभव प्रश्न का कोई भी उत्तर, सीधे कर्म को नुकसान पहुंचाता है। पूरा का पूरा हमारा आपका होना गलने पिघलने को विद्यत है। कुछ होकर के जीना एक सम्राट का कोई छोटी सी चीज का चोरी करने जैसा है। जब आप कुछ नहीं हैं, तभी आप सब कुछ हैं।
अहम ब्रह्मास्मी यानी वहां कुछ नहीं है, यह प्राकारंतर से कहा हुआ वही वक्तव्य है।
यह समझना मात्र या प्रश्न उठाना ही बहुत है कि बिना किसी परिचय के जीना क्या है? कुछ जानना या जनाना ओछी सी बात है।
बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोलैं बोल।
रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल॥
रहीम कहते हैं कि जिनमें बड़प्पन होता है, वो अपनी बड़ाई कभी नहीं करते। जैसे हीरा कितना भी अमूल्य क्यों न हो, कभी अपने मुँह से अपनी बड़ाई नहीं करता।
हम आप तो अपना मोल लगाते रहते हैं। सबमें एक दूसरे को रोंदने की होड़ लगी रहती है, जैसे पैसा, पद। किसी भी तरह का व्यक्तित्व आपको वंचित करता है, उससे जो विराट है।
ना कुछ होना क्या है?
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Ashu Shinghal
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