किसी चीज को देखना यानी उसको बिना नाम दिए बस उपस्थित होना।
पटाचारा श्रावस्ती के नगरसेठ की पुत्री थी। किशोरवय होने पर वह अपने घरेलू नौकर के प्रेम में पड़ गई। जब उसके माता-पिता उसके विवाह के लिए उपयुक्त वर खोज रहे थे तब वह नौकर के साथ भाग गई। दोनों अपरिपक्व पति-पत्नी एक छोटे से नगर में जा बसे। कुछ समय बाद पटाचारा के दो बच्चे हुए। उसकी जिद पर अपने माता-पिता के घर जाते हुए एक दुर्घटना में दोनों बच्चों की और पति की मृत्यु हो गई। और जब वह अपने गांव वापस पहुंची तो उसके घर वाले भी एक दुर्घटना में समाप्त हो गए थे। पटाचारा इस घोर विपदा को सह नहीं पाई और विक्षिप्त होकर के निर्वस्त्र घूमने लगी।
सब तरफ से संकट कभी कभी शुभ कर्मों की वजह से भी जीवन में आते हैं। जेतवन में भगवान बुद्ध धर्मोपदेश दे रहे थे। पटाचारा अनायास ही वहां आ गई। पटाचारा जब बुद्ध के कुछ समीप आई तो बुद्ध ने उससे कहा – “बेटी, अपनी चेतना को संभाल”।
पहली बार किसी ने उसको उस पार से पुकार भेजी थी। कभी कभार जीवन में कोई पुकार उस पार से आती है। इस पार से आई पुकार केवल सांत्वना दे सकती है, निदान नहीं। बुद्ध की बात को सुनकर के पटाचारा फूट फूट कर रो पड़ी। उसका रूदन अज्ञेय की पुकार के लिए कृतज्ञता का ज्यादा था, और दुख का कम था। जीवन में ध्यान के अतिरिक्त और कोई निदान नहीं है, ध्यान के अतिरिक्त सब दूसरा कदम है।
एक दिन स्नान करते समय उसने देखा कि देह पर पहले डाला गया पानी कुछ दूर जाकर सूख गया, फिर दूसरी बार डाला गया पानी थोड़ी और दूर जाकर सूख गया, और तीसरी बार डाला गया पानी उससे भी आगे जाकर सूख गया।
इस अत्यंत साधारण घटना में पटाचारा को समाधि का सू्त्र मिल गया। “पहली बार उड़ेले गये पानी के समान कुछ जीव अल्पायु में ही मर जाते हैं, दूसरी बार उड़ेले गये पानी के समान कुछ जीव मध्यम आयु में चल बसते हैं, और तीसरी बार उड़ेले गये पानी के जैसे कुछ जीव बूढ़े होकर के मरते हैं। सभी मरते हैं। सभी अनित्य हैं”।
जल बारी बारी से सुख गया है, यह देखकर पटाचारा सोतापन्ना (श्रोतापन्ना) को उपलब्ध हो गई। सोतापन्ना यानी जो परम शांति की धारा में, अज्ञेय में विलीन हो गया है। हमारे द्वारा उठाए गए सभी दूसरे कदम थोड़ी देर में ही सूख जाते हैं। हमारे द्वारा उठाए गए कदमों से उत्पन्न जीवन दुख की एक गाथा ही तो है।
पटाचारा के लिए बुद्ध के द्वारा उस तरफ से दी गई एक पुकार से, उसका परम दुर्भाग्य परम सौभाग्य में परिवर्तित हो गया। जरा सा पुकार की दिशा में देख लेने की जरूरत भर है। वैसे भी बचता क्या है यहां पर, सब परिवर्तित हो जाता है, हमारी सारी उपलब्धि, हमारी सारी चालाकी समाप्त हो जाती है। थोड़ा पानी एक कदम पर सूख जाता है थोड़ा पानी दो कदम पर सूख जाता है।
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Ashu Shinghal
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