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Ashwin

सभी विकल्पों से मुक्त कर्म क्या है?

ध्यानशाला सुबह का सत्र, 21 नवंबर 2024


वह कर्म क्या है, जो सभी दुविधाओं से मुक्त है? सभी विकल्पों से मुक्त कर्म क्या है? वह कर्म क्या है, जिसमें कोई विकल्प नहीं है?


क्या जीवन में वास्तव में दो विकल्प हैं? क्या मौलिक क्रिया में कोई विकल्प है? मूल क्रिया पर पर्दा पड़ने के कारण सभी विकल्प पैदा होते हैं। मैं का एहसास वास्तव में आभासीय धरातल पर खंडों में विभक्त है, यह आधारहीन है। सत्य का धरातल इतना विराट है कि उसको बुद्धि से जाना ही नहीं सकता है।


जीवन विकल्प शून्य है। इसका सम्यक बोध विचार के तल पर नहीं घट सकता है। जो सिद्ध करने चलेगा, वही इसे विभाजित कर रहा है। नादानी का समूल अंत कभी भी नादानी से नहीं हो सकता है। कोई भी प्रयास नए विकल्प को निर्मित करेगा। मेरे किसी भी प्रयास से, बोध नहीं घट सकता है।


वह जीना क्या है, जो विकल्प के धरातलों से मुक्त है? जो समायतीत है, उसका बोध हमें नहीं हो सकता है। जो कर्म विकल्पों से मुक्त है, उसका हमें बोध नहीं हो सकता है। हमारा चित्त गति या ठहराव को ही जान सकता है। यदि समय नहीं है, तो ना तो गति है ना ठहराव है। जीवन में दो कर्म नहीं हो सकते हैं।


यदि जीवन के अतिरिक्त कुछ हो तभी गति संभव है, पर जीवन के अतिरिक्त कुछ है ही नहीं, तो उसमें कोई गति भी संभव नहीं है। सम्यक समझ, सम्यक श्रवण मुक्त करता है। जो शुरू होता है, अंत होता है, वह जीवन या सत्य नहीं है। यदि इसकी भी कोई योजना चल रही है, तो हम चूक जाएंगे। सही समझ है, तो सत्य की ओर गति नहीं है, पर हम उस तरफ उन्मुख हैं।


बोधिधर्म चीन गए थे, पर वहां वह एक दीवार की तरफ मुंह करके बैठ गए, वह किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं देते थे, और ना ही पीछे मुड़ते थे। एक बार एक युवक आया और उसने उनसे कहा कि बोधिधर्म पीछे मुड़ो। जब वह नहीं मुड़े, तो तुरंत ही उस युवक ने अपना एक हाथ काट दिया। बोधिधर्म मुड़ गए, नहीं तो वह अपना सिर काटने को तैयार था।


सिर राखे सिर जात है, सिर काटे सिर होय।

जैसे बाती दीप की, कटि उजियारा होय।।


क्या वास्तव में जीवन में दो चेहरे होते हैं? हमारा मूल चेहरा क्या है? यदि कुछ नहीं आता है, तो वह भी एक विचार है। क्या मूल चेहरा भूला जा सकता है? क्या ध्यान को करने की जरूरत पड़ सकती है? क्या ध्यान मेरे द्वारा साधा जा सकता है?


क्या मौलिक चेहरा जांचा जा सकता है? जब तक मौलिक चेहरा नहीं जांचा गया है, तो वह कौन है जो जी रहा है? हम तो कल्पना के चेहरों में ही जी रहे हैं।


झूठे चेहरे में भी यदि कोई स्थायित्व हो, तो बात शुरू करी जा सकती है। कौनसा चेहरा आपका है? यदि जीवन में दो धरातल, दो समय, दो कर्म नहीं हैं, तो किस चेहरे को हम जी रहे हैं? हम उसी जगह पर नहीं हैं, जहां हम हैं, हम बाकी सब जगह घूम रहे हैं।


वो जीना क्या है, जो दो चेहरों से मुक्त है? क्या हम समझ रहे हैं कि सभी चेहरे संयोगिक हैं? क्या हम किसी एक चेहरे पर इतना आश्रित हो जाते हैं कि हम समझ रहे हैं कि वही जीवन है? कहीं हम मौलिक जीवन को विस्मृत तो नहीं कर बैठे हैं?


हम आधा अधूरा ही जीते हैं। कहीं कोई परिचित छूट ना जाए, कहीं कोई अपरिचित चोट ना पहुंचा दे, हम इन्हीं सब कल्पनाओं में आधा अधूरा जीते रहते हैं। क्या वास्तव में मौलिक चेहरे में कोई विकल्प है? मैं बेटा, मैं पति, मैं दोस्त हूं, और इसमें यदि कुछ भी खंडित हो जाता है, तो हम पीड़ित हो जाते हैं।


जो अनबना चेहरा है यदि उसमें हम उपस्थित हैं, तो बनते बिगड़ते चेहरों से कुछ अंतर नहीं पड़ता है। जिस पर लोकोपवाद हो रहा है, वो चेहरा तो कभी असल था ही नहीं। संयोग में चेहरे की उपस्थिति आई, संयोग हटते ही वो समाप्त हो गया।


एक योद्धा अपने मास्टर के वध करने वाले को खोज रहा था। जब वह उसे मिल गया और वह उसे मारने ही वाला था, तो उसने योद्धा के चेहरे पर थूक दिया। तब योद्धा ने अपना भाला फेंक दिया, और कहा की कभी और इस युद्ध को लड़ेंगे, क्योंकि अभी बीच में मेरा क्रोध का चेहरा आ गया है।


क्रोध लक्षण है कि मूल चेहरे की प्रतीति भंग हो गई है। यदि किसी भूमिका को हम अपना चेहरा समझ रहे हैं, तो हम भ्रम, दुख में चले जाएंगे। एक गति मूल चेहरे की तरफ लौट रही है, और एक गति उससे दूर ले जाती है। जो भी अभी है, उसमें मूल चेहरे का सत्यापन कर लें। मूल चेहरे का खो जाना बहुत बड़ा दुर्भाग्य है।


मूल चेहरे को जानते हुए यदि अनेक चेहरे में कोई घूम भी ले, तो किसी भी चेहरे के बदलने से कोई दुख नहीं होगा। मूल चेहरे का पता नहीं चल सकता है, क्योंकि मूल चेहरा सदा उपलब्ध है। जब तक मूल चेहरे की प्रत्यभिज्ञा नहीं है, तब तक प्रेम नहीं हो सकता है।


वह चेहरा क्या है जो विकल्पों से मुक्त है? वो चेहरा क्या है, जो बिना साधे उपस्थित है? वह चेहरा ढूंढो, जो जन्म से पहले था? यदि उत्तर आता है, तो किसको उत्तर आता है?


असंभव प्रश्न नित नए नए प्रस्फुटन ले कर के आता है। मूल चेहरे में सभी बनावटी चेहरों की आहुति हो जाएगी। मशीन से बाहर जो जीवन है, यहां उसका अन्वेषण हम कर रहे हैं।


क्या कोई जीना ऐसा है, जो सभी चेहरों के विकल्प से मुक्त है? मूल चेहरा बोधातीत है। असंभव सवाल उठाया जा सकता है, पर इसका कोई उत्तर नहीं आएगा। वह चेहरा क्या है जिसका कोई विकल्प नहीं है, जो कभी भी ओझल नहीं होता है? वो चेहरा क्या है, जिसपर सारे चेहरे बनते बिगड़ते रहते हैं? इस अन्वेषण को यदि हम अवसर देंगे, तो जीवन का मूल चेहरा अपने आप उघड़ता चला जाएगा।

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