तीन मित्र थे उन्हें पहाड़ की चोटी पर एक व्यक्ति खड़ा हुआ दिखा। एक मित्र ने कहा कि वह अपने मवेशी को ढूंढ रहा है, दूसरे मित्र ने कहा कि वह अपने किसी मित्र का इंतजार कर रहा है, और तीसरे मित्र ने कहा कि इतनी सुंदर सुबह है इसलिए वह अपने ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है।
जब हम किसी को पालते हैं, वह हमको पालने लगता है। जिसका हम लाभ उठाते हैं, वह हमारा लाभ उठाने लगता है। मित्र होना शत्रु होने की तैयारी है। कोई व्यक्तिगत ईश्वर जैसा होता ही नहीं है, जिसकी प्रार्थना की जा सके।
मैं बस हूं, इसका भी क्या अर्थ है? हम आप जिन व्याख्याओं को जानते हैं, वो बुद्धि की व्याख्याएं ही हैं। हम अवलोकन करके विचारों को रोकना चाहते हैं। जैसे कि विचार शून्यता है, और उसको हम देख रहे हैं, फिर शांत होकर अपने पुराने उद्देश्यों को और भी सक्षमता से पूरा करने में लग जाते हैं। अवलोकन जीवन है, उसमें कोई एजेंडा नहीं है, यह अवलोकन ही जीवन की सहजता है। अवलोकन में किसी भी कंटेंट में बदलाव करने की कोई चेष्टा ही नहीं है। चिंता से निश्चिंत होने का प्रयास, यह भी अवलोकन नहीं है।
हम जो भी देखते हैं उसके साथ एक टिप्पणी जुड़ जाती है। जो भी है, क्या उसे बिना किसी टिप्पणी के देखा जा सकता है? जिस भी अवलोकन का जन्म किसी हेतु के लिए होता है, वह अवलोकन नहीं है; और हमारी बुद्धि बिना किसी हेतु के काम ही नहीं कर सकती है। अवलोकन को अवसर देना बुद्धि की किसी भी गतिविधि से मुक्ति है।
अवलोकन यदि जीवन में उतरा है, तो उसका हमें पता ही नहीं चलेगा। अवलोकन वो है, जो पार की किसी भी कल्पना से मुक्त है। यानी आर में भी अगर हमारी उपस्थिति है, वह जीवन में व्याप्त है, पर फिर भी उसका हमें पता नहीं चलेगा।
यदि प्रथम तल पर अवलोकन अतीत से या भविष्य से प्रेरित है, तो जहां भी हम पहुंचेंगे वहां बंधन ही होगा। पहले ही कदम पर यदि अवलोकन मुझ से मुक्त है, तो वह मुक्ति अभी भी उपलब्ध है। अवलोकन का क्या परिणाम आएगा, वह बात ही दोयम हो गई।
बुद्धत्व की अनुपस्थिति जैसी कोई चीज होती ही नहीं है, दिखना काफी है। यह हमारे लाखों साल के अतीत को, एक साथ समाप्त कर देता है। दिखने का किसी कारण से प्रेरित होना, दिखना नहीं है, वह दिखने का एक झांसा है। दिखने के कौशल की पावनता ही मुक्ति है।
सारी जिम्मेदारी सम्यक अवलोकन पर है। सम्यक अवलोकन डूबा दे, तो डूबा दे, या उबार दे, तो उबार दे। जैसे ही अवलोकन में यह भी आता है कि मुझे मन को आहुत करना है, तो हम एक आभासीय पार निर्मित कर लेते हैं। और साथ ही आर और पार के बीच एक मेढ़ निर्मित कर लेते हैं, एक 'या' का विकल्प निर्मित कर लेते हैं। जब हम मन के साथ कुछ नहीं कर रहे हैं, तो नैसर्गिक रूप से मन के बचने की संभावना है, तो यह बात ही अलग है। किसी भी घटना का यदि विपरीत निर्मित हो, तो तुरंत बहुत सावधान हो जाइए।
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