अगाध का गाध में अंतिम कदम - कुछ मुख्य विषय - By Ashwin
१) क्या हमारे जीवन में कुछ भी ऐसा है जो समय की संरचना से मुक्त है? एक प्रश्न यह भी उठता है कि यदि हम अतीत, और भविष्य से मुक्त हो जाएं तो "मैं" से मुक्त होने की क्या आवश्यकता है? उत्तर प्रमाण, पूर्व प्रमाण से भिन्न भी एक चीज है, जीवंत प्रमाण। संवाद में गहराई से उतरने से, बिना प्रतिक्रिया के सुनना, यानि बिना सुनने वाले के सुनने की कला से जीवंत प्रमाण घटित होता है, और यदि उसमें कुछ सच्चाई है तो वो बोध में तत्क्षण प्रकाशित हो जायेगा।
२) बुद्धि से मैं का निषेध नहीं हो सकता है। मैं के निषेध के लिए सुनना महत्वपूर्ण है, इसके लिए होश का होना अनिवार्य है। हम जो उपनिषद को अर्थ देते हैं वो बुद्धि से आता है, दर्शन से नहीं आता है।
वर्तमान में जो मैं है, क्या वो अतीत और भविष्य से मुक्त है? निश्चित रूप से ऐसा नहीं है, ये मैं विचार की उत्पत्ति है। जैसे आप कहते हैं कि कोई प्रतिक्रिया नहीं है केवल साक्षी है और वर्तमान है, तो इसमें भी सुक्ष्म रूप से मैं बना ही हुआ है। लेकिन जब आप सवाल उठाते हैं की वो देखना क्या है जो मैं नहीं कर रहा हूं, तो निर्विकल्प जागरण को एक अवसर मिलता है।
३) आंखें प्रकृति है, वृक्ष प्रकृति है, जो छवि दिखती है वो प्रकृति है, और जागरण है। यह प्रकृति बदल जायेगी, पर जो जागरण मात्र है, जिसमें कोई जागृत नहीं है, चैतन्य नहीं है, चैतन्यता मात्र है, चिन्मात्र है, वो नहीं मिटेगा, वो अमृतत्त्व ही है। वो जो क्रिया है, देखने वाले से हटकर दिखने में, वो कभी नहीं मिटती है, इसिको श्रृद्धा कहते हैं।
समय की सूक्ष्मतम इकाई मैं ही है, वर्तमान के रूप में, और यह समझ ही कालातीत है। समय, विचार और अहंकार, ये ही मैं का एहसास है, एक ही चीज के तीन नाम हैं। मेरे जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है जो समय की धारा से मुक्त हो। जैसे स्वाद घट रहा है और जागरण है, लेकिन जैसे ही मैंने कहा स्वाद मैं ले रहा हूं तो मन ने हस्तक्षेप कर दिया। जब ज्ञानिंद्रियों में कुछ नहीं घट रहा है, तो केवल चेतना है, चिन्मात्र है, जागरण मात्र है।
४) क्या मैं का दर्शन शुद्ध है, या जो मैं के पार का दर्शन है, वो शुद्ध है? वह देखना क्या है जो मैं नहीं कर रहा हूं? विशुद्ध वर्तमान से मुक्त जीना क्या है? इसको देखने मात्र से यह सिद्ध हो जाता है कि अंतिम सत्य मैं या वर्तमान नहीं है। निहारने में रस है, स्नेह है, आप कुछ नहीं कर रहे हैं, और निहारने वाला भी कोई नहीं है। देखना हो रहा है, पर देखने वाला नहीं है, वही निहारना हो गया।
५) कालातीत अगाध का जीवन वहीं उपस्थित है, जहां काल का गाध का जीवन है। इस सवाल पर रहते हैं, वो जीना क्या है जो काल से परे है? अगाध का उभरना है, और तत्क्षण गाध का विसर्जन है।
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