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सत्संग की महिमा (ध्यानशाला सुबह का सत्र, 22 जून 2024)

Ashwin

कबीर साहब से एक युवक ने पूछा कि सत्संग से क्या मिलता है?

कबीर साहब ने कुछ नहीं कहा बस हथौड़ा उठाया और एक चोट खूंटे पर कर दी। यही क्रम चलता रहा, पर कबीर साहेब की उस उपस्थिति में, उस मौन के महासागर में जो मन से निर्मित नहीं हो सकता है, वह युवक गल गया। उस युवक ने कहा कि मुझे बाहर भीतर दोनों में पता चला, की कबीर साहेब क्या इशारा कर रहे हैं। साहेब बाहर खूंटा ठोकते थे, वो मजबूती से धंस जाता था, उससे पशु को बांधा जा सकता है, और वह मेरे भीतर भी कुछ गहरा जाता था। सत्संग से जो नहीं समझा जा सकता है, वो भी जगह लेने लग जाता है।

 

कई बार जो आपको सुझाव देता है, वह भी नहीं जानता कि इससे आपके जीवन में क्या प्रभाव पड़ सकता है। कौन क्या कहता है उसका महत्व नहीं है, जो सुझाव दे रहा है उसके जीवन में क्या हो रहा है उस पर भी ध्यान मत दीजिए। सत्संग में बैठिए, सत्संग का अर्थ है सत्य का संग, ध्यान का संग। जिनकी नजर अपनी तरफ घूमी हुई है, उनके साथ बैठिए, और अपनी तरफ देखिए। यदि अपनी तरफ नहीं देखेंगे तो हम ऐसे लोगों को खोज नहीं पाएंगे, वो मिल भी जायेंगे तो हमसे छिंटक जायेंगे, जैसे कमल के पत्ते पर पानी की बूंद टिक नहीं पाती है। यदि हमारे अंदर ध्यान सधने लगे तो बैठिए, हृदय से बैठिए।

 

एक घड़ी आधी घड़ी, आधी में पुनि आध।

कबीर संगत साधु की, कटै कोटि अपराध।।

 

एक पल, आधा पल, या आधे का भी आधा पल, में भी संतों की अच्छी संगत करने से मन के करोडों दोष मिट जाते हैं।

 

एक अमीर व्यक्ति ने अपना बड़प्पन दिखाने के लिए कबीर साहेब के लिए एक कुर्ता बनवाया, उसमें उसने बाहर मखमल और अंदर सस्ता कपड़ा लगवाया था। उसने वह कुर्ता कबीर साहब को दिया और उनके सामने फूला फूला बैठा था। हम भी दिखावे के लिए पता नहीं क्या क्या करते रहते हैं।

 

अगले दिन कबीर साहब कुर्ता उल्टा पहन कर बैठे हुए थे। अमीर व्यक्ति ने कहा कि मखमल वाला हिस्सा बाहर रखना था। कबीर साहेब ने कहा तुमने मुझे दिखने के लिए कुर्ता दिया था या पहनने के लिए दिया था? जो मखमल का हिस्सा है वो देह से स्पर्श कर रहा है, सही ही तो पहना है।

 

हम लोगों ने जीवन का कुर्ता उल्टा पहना हुआ है, जीना, प्यार का दिखावा कर रहे हैं, असल में जी नहीं रहे हैं। कबीर साहेब जैसे लोग कभी कभार दिख जाते हैं तो हम उनको सउर सिखाते हैं कि तुमने कुर्ता उल्टा पहना हुआ है। जो हमारा सम्मोहन तोड़ने के लिए हमारे पास आते हैं, तो उनको हम कहते हैं कि ये हमें सम्मोहित करता है। हम सब क्या जानते हैं कि कबीर साहेब के पीछे कौन था, वो तो बस एक बहाना बने हैं।

 

उल्टा कुर्ता पहन करके जीने से मुक्त जीना क्या है?

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