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Ashwin

उपस्थिति जिसमें मेरी भूमिका नहीं है (ध्यानशाला सुबह का सत्र, 21 जून 2024


 

वह उपस्थिति क्या है, जिसमें मैं की उपस्थिति की कोई भूमिका नहीं है?

 

एक उपस्थिति है जो अपने से सधी ही हुई है। उपस्थिति ही जागरूकता है, उसको साधना नहीं पड़ता है। ये गहरा वहम है कि होश या उपस्थिति को साधना पड़ता है। यदि जो चल रहा है वहां नहीं रहकर कुछ और ही आभासीय धरातल पर चल रहा है, इस तथ्य पर दृष्टि भी उपस्थिति ही है। उपस्थिति साधने के लिए कुछ नहीं करना पड़ता है। 

 

अध्यात्म में यह प्रश्न अकसर उठता है कि वह कौन है जो देखता है?

 

इसका उत्तर देने के लिए मजबूरी में दृष्टा या साक्षी शब्द का उपयोग किया गया होगा। जो इतनी बेहोशी में है, उसको पहला कदम बताया जाता है कि दृष्टा या साक्षी है। पर बहुत सारे विद्वान यहीं पर ठहर जाते हैं, यहीं बुद्धि की पराकाष्ठा पर ही रुक जाते हैं। सत्य यानी उपस्थिति या जागरण है, जो उपलब्ध ही है, यहां कोई देखने "वाला" नहीं है। जो माध्यम सत्य की ओर संकेत करता है, वह माध्यम ही प्रमुख हो गया, और सत्य छूट गया।

 

मोह क्या है?

 

एक कहानी है। एक बंदर बुद्ध से कहता है कि मैं बुद्ध होना चाहता हूं, मैं बंदरों का राजा हूं। उस बंदर ने कहा कि मैं छलांग लगाकर पृथ्वी के अंत तक पहुंच सकता हूं। बुद्ध ने कहा कि अच्छी बात है, जरा मुझे भी दिखाओ। बंदर छलांग लगाता हुआ पृथ्वी के अंत तक पहुंच गया था, जहां उसे पांच खंबे मिले। वो वहां मूत्र करके अपनी निशानी छोड़ आया। पर वास्तव में वो कहीं गया ही नहीं था, वो बुद्ध की गोद में ही बैठा था।

 

बंदर यानी मन, और उसका राजा यानी मैं। हम भी ऐसे ही कल्पना के जगत में कुछ मान कर बैठ जाते हैं, और केवल गंदगी ही फैलाते रहते हैं। अस्तित्व ही असल जीवन है, इस असल में आपने क्या असल उपलब्धि हासिल की है, या क्या असल उपलब्धि हासिल कर सकते हो?

 

जो भी हमारे पास है, उसको जकड़ कर रखना ही मोह है। जो नहीं है उसकी चाह करना लोभ है।

 

गहरे से गहरा मोह मैं है, उस मोह को बचाए रखना मैं है। हमें ये भ्रम है कि हम किसी और के लिए जी रहे हैं, लेकिन वास्तव में सब अपने मैं के लिए ही जीते हैं। जो उसके लिए सहयोगी होता है, उसको हम कहते हैं कि तुम मेरे प्रिय हो।

 

मोह से प्रेम समाप्त हो जाता है। आप किसी चीज पर अधिकार तभी कर सकते हैं, जब आप क्लोनिंग या आभासीय सत्ता में चले जाते हैं। मैं का अहसास सदा अपने को नित्य ही समझता है। मोह जकड़ कर रखना है, जबकि प्रेम बिल्कुल अलग बात है।

 

यदि हमारा अस्तित्व से भरोसा टूट गया है, तो हम किसी व्यक्ति को पकड़ लेंगे। हम दूसरे से प्रेम की अपेक्षा करते हैं, पर यदि अस्तित्व से भरोसा टूटा नहीं है, तो हम देखते हैं कि हमसे कितना प्रेम बह रहा है?

 

यदि अथाह श्रद्धा है जीवन के प्रति, तो मोह नहीं होगा। मैं जब तक होगा तब तक मोह होना स्वाभाविक है। क्लोनिंग में जीवन नहीं होता, सूचना या आंकड़े होते हैं। जितनी अधिक सूचना होगी, उतना मैं अपने आप को सुरक्षित महसूस करता हूं।

 

एक सम्राट अपने साम्राज्य को छोड़कर, कुछ कुछ पकड़ करके कोने में बैठ गया है। अस्तित्व में किसी का कोई अधिकार कोई आधिपत्य नहीं है। जब होश है तो ये दिखता है कि जीवन उत्सव मानने के लिए पहले से उपलब्ध है ही, तो मोह विदा हो जाता है।

 

अस्तित्व पर भरोसा यानी अपनी सल्तनत का भान होना कि जीवन या संबंध प्रचुर मात्रा में पहले से उपलब्ध ही है। सम्राट जहां जाते हैं वहां जो उनको चाहिए वो उपलब्ध करा दिया जाता है। यहां कोई अलग नाते रिश्तेदार थोड़े ही हैं, कोई स्ट्रक्चर, संरचना नहीं है कि ये नजदीक का या दूर का कोई रिश्तेदार है, ऐसा कुछ नहीं है। केवल जीवन है, केवल संबंध है। चारों तरफ जीवन मात्र ही व्याप्त है।

 

मोह जीवन का स्वाभाव नहीं है, हमारी क्या मजबूरी है जो जीवन में मोह है? यदि किसी भी स्थिति में कोई आग्रह नहीं है, तो क्या संबंध या जीवन आपको मिलेगा नहीं?

 

जिसको हम संबंध समझते हैं, वो संबंध का मतलब बिलकुल नहीं है, जिसको हम संबंध कहते हैं वो संस्कारिता है, भ्रम है। मोह में बहुत सारी ऊर्जा अपव्यय हो जाती है। इसका अर्थ यह नहीं है कि जो साथ में हैं उनकी उपेक्षा करनी है, ऐसा नहीं कहा जा रहा है। हमारी संबंध की परिभाषा संस्कारित है, नैसर्गिक नहीं है, बस यह देखना मात्र है।

 

विश्व में लगभग ३३ प्रतिशत भोजन बेकार फेंक दिया जाता है, और लगभग २५ प्रतिशत लोग भूखे रह जाते हैं।

 

मेरे बच्चे का क्या होगा, उसके प्रति मोह एक रुग्ण दायित्व है, यह अहंकार से आता है। जबकि नैसर्गिक दायित्व प्रेम से उत्पन्न होता है। हमने बच्चे को "मेरे" से भर दिया है, पर उनको प्रेम से वंचित रखा गया है। अधिकतर बूढ़े लोग एक वस्तु की तरह हो जाते हैं, कोई रस धार नहीं बचती है।

 

प्रेम नैसर्गिक घटना है, आंकड़ों से प्रेम नहीं होता है। हमें देखना है कि क्या हम भी उस ढर्रे के शिकार तो नहीं हैं, जो मोह है। मोह से सच्ची खुशी नहीं मिल सकती है, बस शूल ही मिलते हैं। जो हमको ये लगता है कि कुछ हमारे अधिकार में है, यह कोरा भ्रम है, जिसकी वजह से हम विराट से महरूम रह जाते हैं। जब मोह नहीं होता, तो हम और भी बेहतर तरीके से अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह कर पाते हैं, होश की गुणवत्ता कुछ और ही होती है।

 

देखें की संबंधों के नाम पर मैं क्या क्या पकड़ कर बैठा हूं? हम समझते हैं फिर भी इसमें उतर नहीं पाते, अपनी आदत और उसके खतरे को यथावत देखें। मोह दूसरों और मेरे, दोनों के लिए घातक है।

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