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निमित्त मात्र
चतुर्थ पहर की रात्रि में उतर रहे नि:शब्द के अबाध महागीत को एक शब्द की भी अँजुरी में सँजोने की जिसे न चाह उठी सप्तम पहर के दिन में...

Dharmraj
Jul 28, 20211 min read


नहीं मिटता
प्रेमी मिट जाते हैं प्रेमपात्र मिट जाते हैं प्रेम नहीं मिटता जंगल में बिना पगडंडियों के जाने वाले मिट जाते हैं जंगल मिट जाता है ‘जाना’...

Dharmraj
Jul 27, 20211 min read


असम्भव लिपि
प्रेमी रात्रि में भी उठ उठकर नीम के पेड़ से टँगी पत्र पेटिका झाँक आता था रूठकर गई प्रेयसी की कभी तो खबर आएगी उसे तो सूखे पत्तों की खड़क...

Dharmraj
Jul 26, 20213 min read


हे राम ! मौज तुम्हारी
डग डग जीवन गहराती खाई डग डग चूमे उत्तुंग शिखर गिरना चाहो गिरते जाओ उठना चाहो उठते हे राम! मौज तुम्हारी इससे तुमको किसने रोका है पल पल...

Dharmraj
Jul 24, 20211 min read


अनुगृहीत हूँ
यह जो अबाध उमड़ पड़ा है यह जो अशेष बरस पड़ा है उसके लिए व्यक्ति हो कि परिस्थिति जो भी जैसे भी कारण बन पड़ा है उसके प्रति अनुगृहीत हूँ...

Dharmraj
Jul 23, 20211 min read
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