अलगाव और एकता: मन, बुद्धि, और संबंध का सर्वांगीण अन्वेषण (सुबह का सत्र, 15 जनवरी 2024)
- Dharmraj
- Jan 15, 2024
- 3 min read
अलगाव और एकता: मन, बुद्धि, और संबंध का सर्वांगीण अन्वेषण (सुबह का सत्र, 15 जनवरी 2024)
हमारी भूमिका समाप्त हो सकती है, पर जो भी घट रहा है, उसकी रिपोर्टिंग बंद नहीं होती है।
वह कौनसी चीज है जो जोड़ती है? जो भौतिक, मानसिक, या पारमार्थिक स्तर पर जोड़ती है।
इसमें ज्ञात की कोई भूमिका नहीं है, इसका उत्तर समय स्थान में भी नहीं है। यदि कहें की होश जोड़ता है, तो बेहोशी का जोड़ क्या है?
सबसे पहली चीज जो जोड़ती है वो है अलगाव। ऐसा कुछ भी नहीं है जो ठीक अपने से विपरीत से बंधा हुआ नहीं है। जुड़ने की घटना, अलगाव की घटना से ही प्रकट होती है। विकल्पों में विभाजन है, अलगाव जुड़ाव से बंधा हुआ है और जुड़ाव अलगाव से बंधा हुआ है।
बुद्धि अलगाव या जुड़ने को समझती है, और यदि जुड़ना बुद्धि से पता है तो कहीं ना कहीं अलगाव भी पता है। बुद्धि या मन हमेशा दो में ही गति करता है। वह कौनसी दृष्टि है जो इस पूरी संरचना को एक साथ देख सकती है?
क्या हम ये कह सकते हैं कि सारा देखना मन से ही होता है? क्या निर्विकल्प जागरण की कोई आस है की वहां कुछ घटेगा? या फिर आप ये मानते हैं कि निर्विकल्प जागरण होता ही नहीं है? इस को भली भांति जानने के लिए, इसमें अंतर्दृष्टि होने के लिए, बुद्धि का तेज नहीं बल्कि साफ होना आवश्यक है।
पेंडुलम या दोलन की गति से घड़ी चलती है, और घड़ी में गति होने से पेंडुलम चलता है। जो भी चाहते हैं महसूस करते हैं, उससे हम निर्मित होते हैं, और हम निर्मित होते हैं तो हम और महसूस करना चाहते हैं।
इस पूरी बात की प्रतिभिज्ञा क्या बुद्धि से हो रही है?
आप किसी अच्छी गाड़ी में बैठते हैं, इस अनुभव से गाड़ी की तृष्णा पैदा होती है। मन ने अपने आप को यानी एक व्यक्तित्व को गाड़ी में बैठने की छवि बनाई, और एक केंद्र निर्मित कर दिया। एक काल्पनिक आकाश में इस घटना को सजा दिया, यानी कल्पना में इस घटना को एक जीवित रूप से प्रस्तुत कर दिया। यह जो एक आभासीय केंद्र निर्मित हो गया, वो अब इस व्यक्ति को सिद्ध करेगा।
तृष्णा मैं को निर्मित करेगी और मैं तृष्णा करूंगा, चालाकी आपको निर्मित कर रही है और आप चालाकी कर रहे हो।
इस पूरी संरचना में अंतर्दृष्टि का होना क्या है?
यदि अंतर्दृष्टि या जागरण का भी कोई दृष्टिकोण है तो उससे आप ज्ञानी हो जाओगे और वही ज्ञान जुगाली करने लगेगा। कृष्णमूर्ति जी ने आध्यात्मिक व्यक्तित्व का बहुत ठोस रूप से खंडन किया है।
इस अंतर्दृष्टि के लिए क्या किसी विशेष समझ की जरूरत है? या आपकी समझ है कि ऐसा कुछ होता ही नहीं है? या कोई अंधविश्वास है कि कोई बहुत बड़ा ज्ञानी बता रहा है इसलिए ये बात सही है? या इसमें तो बहुत प्रयास चाहिए जो मेरे बस की बात ही नहीं है? ये सब मन के हथकंडे हैं। क्या हम किसी को वास्तव में प्यार करते हैं या प्यार में झांसा दे रहे हैं, खुदको भी और दूसरे को भी। क्या मैं की चालबाजी समझी जा रही है?
क्या कोई जागरण ऐसा भी है जिसमें कोई विकल्प नहीं है? क्या यहां कोई आशा है उत्तर आने की, या कोई अंधविश्वास है, या ऐसा होना संभव ही नहीं है?
एक बार यह समझ लिया गया तो विचार सीज हो जाएंगे, रुक जाएंगे। पर इसकी भी कोई कल्पना नहीं कर लेनी है कि ऐसा होने से विचार रुक जाएंगे, नहीं तो मन उसी कल्पना को पूरा करने में लग जाएगा। कई बार जो लोग ध्यान करते हैं उनमें ऐसा हो जाता है कि ध्यान करने से मन थोड़ी देर शांत हो गया, और जब ध्यान समाप्त हो गया तो मन फिर से अशांत हो गया। ये एक तरह से दोहरे व्यक्तित्व (split personality) को जन्म दे सकता है। अपने ऊपर संशय कीजिए कहीं मैं किसी झांसे में तो नहीं फंसा हूं? अब घड़ी इसलिए चल रही है कि मैं उसको हासिल करके रहूंगा जो मैं से मुक्त है, जहां पेंडुलम रुक जाता है, यह भी एक झांसा है।
असंभव प्रश्न के प्रयोग का मर्म क्या है?
यहां कोई शिक्षा नहीं है बस एक इशारा मात्र है; मैं झूठ हूं और यहां बात खत्म। हमें खुद ही असंभव प्रश्न के अनुशासन को सत्यापित करना है, उसके मर्म को पकड़ना चाहिए। क्या आप प्रश्न का अनुशासन समझ रहे हैं?
यहां कोई नई शिक्षा नहीं है, बेशर्त मैं से मुक्त होकर के क्या जिया जा सकता है?
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Ashu Shinghal
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