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Writer's pictureDharmraj

कन्विंस मुक्त जीवन (सुबह का सत्र, 17 जनवरी 2024)

सुबह का सत्र, 17 जनवरी 2024


एक युवक जांच रहा था पर किसी भी कटोरे से संगीत नहीं आ रहा है, बाद में उसे पता चला कि जिससे वह जांच कर रहा था उस कटोरे में ही दरार थी। हम भी जिस कटोरे से जांचते हैं उसको ही हमने कभी नहीं जांचा। मैं हूं इसलिए दूसरा व्यक्ति दिखाई पड़ता है, अन्यथा यहां जीवन ही तो है। यदि कहीं कोई असंगति दिखाई भी पड़ती है तो वहां प्रमाद दिखेगा, जिसके लिए कोई व्यक्ति जिम्मेदार नहीं है। हमें किसी व्यक्ति से नहीं निपटना है, मैं ही असंगति है, मैं ही वो खोटा कटोरा है।


हमारा होना ही यानी कन्विंस होना, जो समस्या है उससे हम समाधान ढूंढ रहे हैं। हम समझते हैं कि "यही जीने का सही तरीका है", यानी यहां मैं का कनविक्शन बहुत ठोस है। जब तक हम या आप हैं तो वहां राजीनामा है, जो नैसर्गिक जीवन है वहां कोई राजीनामा थोड़े ही है।


कनविंस होने से मुक्त जीवन क्या है? हमारे सभी रिश्ते शर्त पर निर्भर है, क्योंकि हमें शउर नहीं है संबंधित होने है। सत्य हमारा वरण करता है, हम सत्य का वरण नहीं कर सकते हैं।


वह जीना बिलकुल संभव है जिसको कन्विंस नहीं किया जा सकता है, जो किसी भी तरह के दृढ़ विश्वास से पूरी तरह से मुक्त है। हम उससे खतरे को समझ रहे हैं, जो खुद खतरे का हिस्सा है।


अगम अगोचर गमि नहीं, तहां जगमगै जोति।

जहाँ कबीरा बंदिगी, तहा पाप पुन्य नहीं छोति।।


जहां जागरण का प्रकाश फैला हुआ है वहां कुछ भी दुर्गम, छुपा हुआ या दुख नहीं है। जब निर्विकल्प समर्पण है तो उसको पाप और पुण्य छू नहीं सकता।


हदे छाड़ि बेहदि गया, हुवा निरंतर बास।

कवल ज फूल्या फूल बिन, को निरषै निज दास॥


जिसने सब हद या सहारे छोड़ दिए वही बेहद में हमेशा के लिए समा गया। बिना डाली के कमल का फूल खिला है, यह बात तभी दिखती है जहां निर्विकल्प स्वीकार है।


आप हो यानी कनविक्शन या दृढ़ विश्वास भी साथ है। क्या मैं जीवन के क्षेत्र में कन्विंस हो सकता हूं? आप हो तो कन्विंस हो ही जाओगे। क्या आप मुझसे कन्विंस हो रहे हैं? तथ्य को केवल तथ्य की तरह ही देखिए।


क्या जीवन कन्विंस हुए बिना जिया जा सकता है? ना दूसरे से ना खुद से कन्विंस होइए। उस जीवन को अवसर दीजिए जो हर तरीके के कनविक्शन से मुक्त हो।


पद, मान, सम्मान, प्रतिष्ठा आदि की आकांक्षा है तो आप बहुत आसानी से कन्विंस किए जा सकते हैं। परम हित वही है, जहां आप कन्विंस नहीं होते हैं। किसी रचना का सौंदर्य कुछ और होता है, कविता उतर कर आती है, आप सिर्फ माध्यम बन जाते हैं ।


ऐसा जीवन क्या है जो कभी भी कन्विंस नहीं किया जा सकता है?

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Ashu Shinghal

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