मेरे देखे हम मनुष्य के जीवन का जो सबसे बड़ा पाप है, वह है किसी ऐसे व्यक्ति के साथ जाने-अनजाने घात करना जिसने हमारे लिए मनसा, वाचा, कर्मणा सिर्फ़ परम कल्याण का उपाय किया हो!
जिसे पुरानी शब्दावली में गुरु द्रोह कहते हैं।
और सबसे बड़ा अभिशाप है, हमारी मनोकामना का पूरा हो जाना! यानि दुहराव में पुष्ट हो जाना!
ग़ज़ब है हमारा चित्त! वह इन दोनों में ही बहुत सुख महसूस करता है। पहली स्थिति में इसलिए कि, उसने अपने कल्याण या अपने पार की किसी संभावना का निषेध कर स्वयं को स्वयंभू सिद्ध कर लिया।
दूसरा कि, वह जो चाहे पा सकता है, इस भाव का दृढ़ हो जाना! जो उसकी इस भ्रामक स्वयंभू सत्ता को दृढ़ कर सुख महसूस करता है।
“कल्याणमित्र द्रोह समान दुर्भाग्य क्यूँ नहीं है”यह कथन तो प्रयोगशाला तक में सिद्ध हो सकता है। मस्तिष्क की कोशिकाओं, मस्तिष्क के भीतर हो रहे विद्युत और रसायन के प्रभावों तक से इसे जाँचा जा सकता है।
मनुष्य चित्त दुहराव का दूसरा नाम है। जीवंत घटना का प्रथम बोध हमारे चित्त में घट ही नहीं सकता है। जिसे हम कल्याण मित्र कहते हैं, वह एक संभावना है जहाँ पर दुहराव के दुःख और बनावटी जीवन का अंत हो सके! और प्रवेश हो सके जीवन के मौलिक प्रवाह में!
कहें तो इस क़िस्म का द्रोह अपने अंकुर को अपने हाथों से सदा के लिए तोड़ देने जैसा है।
पुरानी भाषा में कहें तो ऐसे व्यक्ति से वही-वही दुर्भाग्य का ढंग जन्मों-जन्मों में दुहरता है। वही-वही घात, वही-वही द्रोह, वही-वही अपना अंकुर आप तोड़कर ऐसे जीवन से उपजे अवसाद और विषाद में अकड़े-अकड़े बजबजाना, सड़ना, घुटना। प्रेम धीरे-धीरे चुपचाप सदा के लिए उनसे मुँह मोड़ लेता है। जीवन दुर्भाग्य की अंतहीन श्रृंखला हो जाता है।
फिर भी उस कल्याण मैत्री ने हमारे लिए दीप तो धरा ही है। हो सके तो हम नज़र उठाकर उसे देख पाएँ!
उस मैत्री ने हमारे द्वारा उसे दिखाए सभी चेहरों के समक्ष दीप धरा है। जाग सकें! तो जो भी चेहरा अभी हो उस पर उस दीप के प्रकाश को पड़ने दें!
कौन जाने दुहराई गलने लगे! मँजाई चमकने लगे!
नववर्ष पर मेरा मुझको संदेश ❤️🙏
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धर्मराज
01/01/2024
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