सांझ का सत्र, 24 जनवरी 2024
यदि मन को सुधारने में लग गए, तो मन तो सुधर जायेगा, पर सत्य फिसल जायेगा, और मन तो फिर से बिगड़ भी सकता है। बेहतर तो यही है कि जो सत्य है वो सीधे जीवन में उतरे। जीवन में कुछ भी सुधारने को आधार ना बनाएं अन्वेषण का, इसलिए सुधार की बजाए सत्य की ओर गति ज्यादा उचित है।
परिवार, गुण, राजनीति, सद आचरण, नैतिकता, हुनर, पद, प्रतिष्ठा आदि जीवन का उद्देश्य नहीं हो सकते हैं; जीवन स्वयं ही अपना उद्देश्य है। कोई भी लक्ष्य भ्रामक है, कुछ पाने का हो, या कुछ बनने का हो। कहने के लिए, जीवन के सम्यक ढंग में बने रहना, खुद को जानना ही जीवन का लक्ष्य हो सकता है, और खुद को जानने में ही सारी त्रुटियां अपने आप गिरने लगती हैं।
आपको किस रूप में जाना जा रहा है, या जाना जायेगा, इसकी फिक्र आपको क्यों है? आपने सबकी छवि बना ही ली है, कबीर की, कृष्ण की; तो आपकी भी छवि बनेगी ही, पर जो भी छवि बनेगी, वो तो आप नहीं हो। अंततः यह अज्ञेय ही जानता है कि मेरा होना क्या है, इसलिए अपने बारे में कुछ भी राय बनाना अर्थहीन है। हम समझते हैं कि हम कुछ जानते हैं रमन महर्षि के बारे में, पर वास्तव में वो वह हैं ही नहीं, जिनको जाना जा सकता है।
आप खुद को जस का तस जान लें, इस जानने में जानना गहराता जाता है। आप जो जो जानते जाते हैं अपने बारे में, या अपने को, वो सब समाप्त होता चला जाता है। जैसे जैसे हम जीवन की किताब जस की तस पढ़ते जाते हैं, जितना पढ़ते हैं, वो पढ़ते पढ़ते उतनी ही कोरी होती चली जाती है। असल तो वह है, जिसपर यह किताब यह कहानी लिखी गई है। धीरे धीरे जीवन में जो व्यर्थ है, वो समाप्त होता जाता है, बस आप खुद को जानिए तो सही।
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Ashu Shinghal
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