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Writer's pictureDharmraj

जीवनघाती दुहाई

असुरक्षा की दुहाई देकर जब हम अपने आस पास एक परकोटा निर्मित कर लेते हैं, तो जीवन के वे प्रसाद भी बाधित हो जाते हैं; जो सहजता से बिना भेदभाव बरसते हैं।

वह व्यक्ति जिसकी समझ और अनुभव में  दुर्भाग्य से यह बैठ गया है कि, दुनिया में लोग अपने स्वार्थ से ही जुड़े या जुड़ सकते हैं, वह अपने तथाकथित निजी हितों के आस पास एक ऐसी महीन और पारदर्शी दीवार निर्मित करने लगता है, जिसे लाँघ कर उसे ठगना तो दुरूह हो सकता है, लेकिन साथ ही वह सब भी बाधित हो जाता है, जो अकारण, सहज सब को सदा प्रसाद और आनंद की तरह बरस ही रहा है।

        

                   ख़ुद को बचाने के फेर में वह अपने अनुभवों और समझ की चालाकी से निरंतर अपने परकोटे की दीवार को इतना महीन बुनने लगता है कि, अंतस में जीवन की हवा, रोशनी के साथ-साथ जीवंतता के प्राण भी उसके निर्मित परकोटे को पार नहीं कर पाते!

फिर तो ऐसा व्यक्ति चलता-फिरता शव कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी।

 

कुछ विद्रोही युवा चित्त जाने-अनजाने सुरक्षा परकोटे के इस कुचक्र को देख लेते हैं। फिर तो उनकी जीवन की दशा और दिशा कुछ और ही होती है। वे फिर इस धरती पर हम इंसानों के बीच किसी और लोक के जीव से जान पड़ते हैं।

 

कल साँझ जब भोजन के लिए “आनंद रमणा” जाकर भोजन आर्डर ही किया था कि, वह थोड़ी-थोड़ी जानी पहचानी सी युवती सामने आकर बैठ गई। हम फ़ेसबुक मित्र थे। उसने मुझसे आई कविताओं को हृदयपूर्वक इस तरह पढ़ा था कि, उसे न समझ आने वाले शब्दों के लिए वह मित्रों से मदद लेती थी।

 

       साथ भोजन करते हुए पता चला कि, आईआईयम पास आउट करने के बाद नौकरी वग़ैरह के उलझाऊ और जीवन शोषक ढंग से उसका कुछ ही समय में मोह भंग हो गया। वह तथाकथित जीवन की मुख्यधारा से बाहर आ गई। किसी अनजानी सी प्रेरणा से वह तिरु आ गई। फिर तो वर्षों से निरंतर यहाँ आती और प्रवास कर रही है। जीवनयापन के लिए उसने पहाड़ों में रहकर कुछ जन जागरूकता के काम को बस ऐसे ही हल्के-फुल्के ढंग से शुरू कर लिया है।

 

     जीवन में कहाँ जाना है, क्या पाना है, क्या लक्ष्य है ऐसे सवाल ही नहीं आते! बस अभी और यहीं में आनंदित है। उसने कबीर आदि को गाने के वे ढंग फिर से जगा लिए हैं, जो उसके भीतर सो गए थे।

अरुणाचला और उसके प्रति उसका अगाध प्रेम तो अवर्णनीय है।

हम फिर साथ में साँझ बैठे। देर रात तक वह विभोर हो कबीर को गाती रही। निश्चित ही उस अविनाशी प्रेम ने उसके अंतस को छेड़ना शुरू ही कर दिया है। यह जगत कितनी अनूठी विभूतियों से पटा है।

 हाँ! हम वही खोज और देख पाते हैं, जो हम होते हैं।

 

ऐसी विभूतियों का साधु हो!🙏❤️

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