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मेरा प्रेम विदा करो

हे देह अदेह से न्यारे प्रियतम्

तुम्हें कैसे ढूँढूँ

देह दृष्टि से

मेरी दृष्टि शुद्ध करो


हे मन अमन से

न्यारे सखा

तुम्हें कैसे भेंटूँ

चित्त आधार से

मेरा चित अवसान करो


हे भाव अभाव

दोनो से न्यारे

तुम्हें कैसे रिझाऊँ

प्रेम गीत से

मेरा प्रेम विदा करो


हे आत्म अनात्म

दोनों से न्यारे

मिलन विरह का

यह खेल अनूठा

अब विराम करो


~ धर्मराज

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