मिर्जापुर कइला गुलज़ार हो!
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय बनारस की कचौड़ी गली से एक क्रांतिकारी को रात तब पकड़ लिया जब वह अपनी प्रेयसी के साथ था। उसे पकड़ कर वे बनारस के पास एक शहर है मिर्जापुर, वहाँ ले गए। वहाँ से फिर उसे सजा देकर काला पानी (रंगून) भेज दिया। जहाँ से वह कभी न लौट सके!
यहाँ कचौड़ी गली में उसकी प्रेयसी तड़प उठी। उसने उसके विरह में घर बार त्याग दिया और संन्यासिन की तरह विचरने लगी। जब थोड़ा उसे देह और आत्मा की सच्चाई का कुछ भान हुआ तो उसने अपनी विरह पीड़ा को निर्गुण भजन में लोकगीत की प्रख्यात कजरी शैली में लिपिबद्ध किया है। इसे मशहूर ठुमरी गायिका गौहर जान ने बड़े दिल से गाया है।
कचौड़ी गली वह गली है जो बनारस में महाश्मशान मणिकर्णिका को जाती है।
कहते हैं सम्यक जीवन वहीं है जहाँ मृत्यु के बोध को बिल्कुल सम्मुख रख कर जिया जा रहा हो!
बिरहन विरह से पूर्व अपने प्रेमी के साथ मृत्यु को सम्मुख धरे वैसे ही जी रही थी पर वह उसे छोड़कर कहीं और चला गया।
वह कह रही है कि, प्रियतम तुमने यह जीवन की मृत्यु गली तो सूनी कर दी और दूर जाकर मिर्ज़ापुर में बस गए!
अर्थात् अंतःप्रज्ञा कह रही है भटके जीव से कि, जीवन का सम्यक् ढंग ध्यान छोड़कर, नग्न सत्य के दर्शन का अवसर त्याग तुम ख़्यालों, कल्पनाओं में जाकर बस गए!
तुम यहाँ होकर मृत्यु के नग्न सत्य के साथ ग़लबाहियाँ डाल जब जीते थे तो जीवन गुलज़ार था। अब तो विषधर काला नाग जीवनशैय्या पर लेटा है।
कहने का अभिप्राय है कि असल मृत्यु वह नहीं है जो श्मशान पहुँचाती है। असल मृत्यु है प्रमाद में जीना, ख़्यालों में जीने में जीवन विषधर से डस लिया जाता है।
आगे वह कहती है कि ख़्यालों, कल्पनाओं, महत्वाकांक्षाओं, तृष्णाओं के तांडव जिसे वह आक्रांता अंग्रेजों की तरह देख रही है वह उसके प्रेमी जीव को वहीं नहीं छोड़ते! वे अब उसे “काला पानी” यानि इतना दूर भेज देते हैं। जहाँ से लौटना असंभव हो जाता है।
हमारी तृष्णा जीवन से हमें इतना दूर ला पटकती है कि फिर लौटना असंभव हो जाता है।
वह कहती है वह विरह में पानी जैसी दुबली पतली हो चली है। अर्थात् जीवन प्रेयसी जीव के बोध के अभाव में बिल्कुल कृषकाय-क्षीणकाय हो चली है।
वह प्रेमी के बिना नमक जैसी गल रही है। अर्थात् बोध के, ध्यान के बिना जीवन नमक जैसा चुपचाप गलता छीजता जा रहा है।
आगे वह कहती है कि मेरे पास कटारी होती तो मैं प्रेमी को काला पानी भेजने वाले गोरों का खून कर देती!
अर्थात् मेरे पास अगर कीमिया होती, ध्यान की कला होती तो जीवन को उजाड़ने वाले, सत्य से विमुख करने वाले प्रमाद को जड़ मूल से काट कर अलग कर देती!
सेजिया पे लोटे काला नाग हो
कचौड़ी गली सून कैले बलमू
मिर्जापुर कैले गुलजार हो,
कचौड़ी गली सून कैले बलमू
एही मिर्जापुर से उडल जहजिया,
सैंया चल गइल रंगून हो,
कचौड़ी गली सून कैले बलमू
पनवा से पातर भइल तोर धनिया,
देहिया गलेला जइसे नून हो,
कचौड़ी गली सून कैले बलमू
धर्मराज
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