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Writer's pictureDharmraj

निर्वाण की पूर्व संध्या

मुझ लौ को साथ ले

नाची हवाओं

बुझाने को तत्पर आँधी तूफ़ानों

तुम्हें भी

निर्वाण का आशीष मिले


इस अंतिम बुझन से पूर्व मैंने

अपने प्राणों के तेल को खींच

नभ सुगंधित कर दिया है


मुझमें तेल भरने के लिए चले कोल्हुओं

बैलों

माटी के कसोरों

तुम सब वह दीप बन जाओ

जिसे एक दिन निर्वाण महाभाग वरण करेंगे

उनके वरण में मेरे बुझते ही बाती विभूति हो जावेगी

मेरा क्षुद्र प्रकाश

उन महाशून्य के चरणों में लीन हो जाएगा

मुझ मैं से

अब तक निरंतर धिकी हुई मेरी मुझको उत्तप्तता

उन प्रिय के हिय में शीतल हो जाएगी


अहो!

मुझ बड़भागी के चरणों में मेरे ही

अश्रु अर्पित हो रहे हैं

अपने निर्वाण कौशल से मैं

अपने पीछे सकल मनुष्य के निर्वाण का

वह अदृश्य मार्ग वैसे ही छोड़े जाता हूँ

जैसे मेरे वे पिता मेरे लिए

बिना मुझे जाने छोड़ गए थे


धर्मराज

29/04/2024

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