top of page
Image by NordWood Themes
Image by NordWood Themes

प्रेम ही हाज़िर है

Writer: DharmrajDharmraj

प्रेम ही हाज़िर है

——————

एक प्रेम ही है जो हाज़िर मिलता है तब

जब आप चिलचिलाती धूप में आसमान की तरफ़ देखते हैं

एक बदली की तरह

वह हाज़िर ही मिलता है

चाहे जितना आपने उसे उबाल कर उड़ा दिया हो

वह बदली की तरह हाज़िर रहता है

वह मज़बूत टेक की तरह हाज़िर मिलता है

की तरह हाज़िर रहता है

एक प्रेम ही है जो हाज़िर मिलता है तब

जब आप झुलसते पैर से विह्वल

जीवन के रेगिस्तान की ओर ताकते हैं

लोचदार दूब की तरह

वह हाज़िर ही मिलता है

चाहे जितनी बेरहमी से

उसे आपने कुचला और रौंदा हो

वह ठंडी दूब की तरह हाज़िर रहता है


एक प्रेम ही है जो हाज़िर मिलता है तब

जब आप टूट चूर चूर होकर

रीढ़ पर मजबूत टेक टटोलते हैं

अडोल ठूँठ की तरह

वह हाज़िर ही मिलता है

चाहे जितनी निर्ममता से आपने

उसकी जड़ों को खोद तलाश

उखाड़ फेंका हो

उस हरे भरे को डूँडा कर डाला हो

वह मज़बूत टेक की तरह हाज़िर मिलता है


वह जो सदा हाज़िर है

प्रेम के अतिरिक्त भला क्या है

वह जो सदा हाज़िर है

प्रेम के अतिरिक्त भला क्या है

वह जो सदा हाज़िर है

प्रेम के अतिरिक्त भला क्या है

                             धर्मराज

                       16/03/2024

Comments


bottom of page