प्रेम ओस
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मुझ तिमिर के चरणों में
साधुवाद!
जिसने रात्रि के मध्य पहर में
जब चमगादड़ों और उल्लुओं की चीखें
जीवन का एक मात्र संगीत थी
तब आकाश के छोर से उतरी
प्रेमओस की बूँद को
ख़ुद को चीर
बिना जाने पहचाने हृदय गुहा के अंतरतम तल में उतर जाने दिया
आज अनूठी भोर हुई है
न जाने किस संभावना के बीज को पूरी रात
प्रेमओस की बूँद ने सींचा है
जो यह अपूर्व पुष्प खिला है
अरे! पुनः पुनः साधुवाद
तिमिर के कहाँ कोई तंतु भी जुड़ते हैं पुष्प से
मुझ तिमिर ने भला कैसे इस
प्रेम ओस को अवसर दिया
यह तो अपूर्व पुष्प है
जो न हुआ न होगा
अब तो हर फैलते उजियारे
हर गहराते तिमिर की लड़ियों में
यह पुष्प
खिलता खिलता ही जाता है
ओस की बूँदें अब इतनी प्रचुर हैं कि
संभावनाओं के बीज भरपूर सींचकर
वह इसकी एक पंखुड़ी पर भी
शोभायमान हैं
धर्मराज
15/03/2024
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