प्रेमी प्रेयसी संवाद
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कहो प्रेमी
हमारे तुम्हारे बीच घट रहे प्रेम में
कितनी धूप है
कितना पानी है
कितनी माटी है
कितना आकाश है
कितनी हवा है
कितने तुम हो कितनी मैं हूँ
सुनो प्रेयसी
हमारे तुम्हारे प्रेम में
धूप है
पानी है
माटी है
आकाश है
हवा है
तुम हो
मैं नहीं हूँ
सुनो प्रेमी
मुझे भी वहीं डुबो लो न
जहाँ तुम नहीं हो चले हो
फिर प्रेम में धूप है
पानी है
माटी है
आकाश है
हवा है
न तुम हो न मैं हूँ
धर्मराज
27/01/2024
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