"निर्भरता मुक्त जीवन", के कुछ मुख्य अंश - By Ashwin
१) हमने साथ साथ चलते हुए ये पाया है कि जो विचार हमारे अंदर चल रहे हैं, वो हमसे अलग नहीं हैं। मैं का बोध और जो विचारों के बीच का अंतराल है उसके प्रति भी हम जागृत हुए। जो भी हमारी छवि निर्मित होती है, उस घटना के समय हम वही होते हैं। जो भी हमारे भीतर चलता है, वो ही हमारा होना है, वो ही हमारी पहचान है। हमने इस यात्रा में जो भी तथ्य है, उसका यथावत अवलोकन किया है, बिना कोई सहारा लिए।
वो जो हमने दूसरे की छवि अपने अंदर बनाई हुई है, वो दूसरे की छवि नहीं है, वो भी हम ही हैं। जिस क्षण जो विचार है, जो अनुभूति है, उस क्षण हम वही हैं। जो भी छवियां बनती हैं वो जीवंत नहीं हैं, वो सोच विचार का परिणाम हैं। अस्तित्व की गरिमामय धारा से उन छवियों का कभी भी संगम नहीं होता है। यदि हमारा होना छवि ही है, तो हम भी अस्तित्व के परम जीवन से टूटे हुए हैं। इस टूटे हुए जीवन से यदि दुख ही उत्पन्न होता है, तो इसमें आश्चर्य कैसा, इसमें चूक किससे हुई है? अस्तित्व हमें दुख देने में भला क्यों उत्सुक होगा? हम स्वप्न हैं, छवियां हैं, जबकि अस्तित्व जीवंत है।
२) कोई हमें दुखी करने के लिए आतुर नहीं है, वो हम ही हैं जो अपने ही प्रसाद से वंचित हैं। जो भी हमारी अनुभूतियां हैं, हमारा क्रोध, बैर, लोभ, निंदा, स्तुति, संबंध, छवियां, धर्म आदि है, सब कुछ हम ही हैं। जो भी हमारे भीतर सक्रिय होता है, वो हम ही हैं। जिस ज्ञान की मैं जुगाली करता हूं, वही मैं हूं, उस समय वही मेरी पहचान है।
इन छवियों के अंत के लिए कोई नई छवि नहीं गढ़नी है। इन छवियों का अंत अपने से होता हो तो हो, लेकिन यदि हम इनका अंत करने चलेंगे तो यह वही मैं है जिसने इन छवियों को बना कर के रखा हुआ है। वैसे अवलोकन, जागरण से इन छवियों का अंत संभव है। इस मानस पटल पर जो भी चल रहा है वो मैं हूं, और इसके प्रति जागरण है। हमने छवि की संरचना को समझा है कि वो कैसे काम करती है, इसलिए हम छवियों को मिटाने के लिए कोई नई छवि नहीं बना रहे हैं। हम बस इन छवियों के साथ जागे हुए हैं, ये प्रयास भी नहीं है कि ये जागरण सतत बना रहे।
३) विचारों और उनकी अनुपस्थिति, जिसको हम मौन कहते हैं, हम दोनों के प्रति जागे हुए हैं। हमने ये बिलकुल स्पष्ट समझ लिया है कि हम केवल हमारी अनुभूति हैं, विचार हैं, इसलिए यह जागरण कभी भी आधा अधूरा नहीं होता है। यह पूरी संरचना एक साथ अखंड रूप से ही जागरण को उपलब्ध होती है - छवि का बनाने वाला, जिसको छवि घट रही है, जो छवि है, और इसमें यदि कोई अंतराल है। लेकिन हमने ये भी स्पष्ट जान लिया है कि यदि हम ही छवि हैं, तो यहां कोई अंतराल है ही नहीं।
हमारे सामने एक ही तथ्य है कि हम जागे हैं। जागरण नहीं छूटे इसके लिए हम कोई एक नई छवि नहीं बना रहे हैं। यानि ऐसा कोई सटीक कर्म घटित हो रहा है जो विचारों, छवियों के चंगुल में नहीं जा रहा है। और ये कर्म है सीधा बेहोशी के प्रति जागरण। वो छवियां जो चल रही हैं, यानि "मैं बेहोश हूं", यही इस पूरी संरचना के प्रति जागरण है।
४) प्रयास के नाम पर यहां किसी मैं का कोई स्थान नहीं है। या तो जागरण है या नहीं है, लेकिन रत्ती भर भी कोई प्रयास नहीं है। प्रयास होते ही आगे कुछ प्रेक्षेपित हो जाता है, जिसे पाने की आकांक्षा बन जाती है। जो कुछ भी हो रहा है वो ना प्रयास है, ना सयास है, ना अनायास है। जो भी कुछ मैं के हाथ में था, उसे बड़ी कुशलता से अज्ञेय के हाथ में सौंप दिया गया है।
मुझे ये भी नहीं पता है कि अज्ञेय जैसी चीज भी कोई होती है। मुझे बस इतना पता है कि मैं जो है वो कोई मान्यता है, कुत्रीम है, और यहीं पर बात समाप्त हो गई। इस क्षण के जागरण के बाद, जागरण फिर से घटित होगा, मुझे ये भी नहीं पता है, ना उसकी चिंता है। केवल इस क्षण का जागरण है, जीवन जिया गया और मृत्यु यहीं घट गई। हर क्षण जागरण या जीवन के साथ साथ मृत्यु घट रही है। जो जागरण के साथ मरता चल रहा है, वो अमृत्तत्व को उपलब्ध है।
यदि तुम्हारे पास कुछ है ही नहीं, लोटा ही नहीं है, तो तुम्हारा नुकसान भी क्या हो सकता है? यदि हम चलते चलते इस बिंदु पर आ जाते हैं कि हम नहीं हैं, मैं ही झूठ है, हमारी पूरी पहचान ही मिथ्या है, तो कैसी विपत्ति, कैसा दुख? सारी दुनिया मेरा अनहित चाहने लगे, तो भी मेरा अनहित कैसे होगा, जब मैं ही नहीं हूं?
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