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Writer's pictureDharmraj

सूने की तराश

सूने की तराश

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ज़िंदगी संगतराश है

यहाँ चलने से राहों को औ राहों से

मुझे तराशा जा रहा है


वो जो मेरे सीने से गुजरी है हवा

तराश कर निकली है मुझे

वह तराशी भी गई है मुझ से


हुआ हुआ हूँ मैं इस सूने की तराश पे

मेरे होने ने भी

इस सूने पे तराश की है


क्यूँ बरसती जाती है ये ज़िंदगी

इस दिल पर बन मुहब्बत का शबाब

क्या इस दिल ने हर हाल में

मुहब्बत और सिर्फ़ मुहब्बत को पनाह दी है


संगतराश ज़िंदगी

फ़िक्र नहीं मुझे कि मुझ से तराश तू क्या होगी

हाँ तू तोड़ मुझे तू फोड़ मुझे

तू चीर मुझे तू काट मुझे

मूरत कर कतरन कर रेत कर

या के धुआँ धुआँ कर के फ़ना कर

मैं राज़ी हूँ

                                 धर्मराज

                           27/01/2024

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