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तथागत मुझे ले चलो

Writer's picture: DharmrajDharmraj

तथागत मुझे ले चलो

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तथागत!

मेरे रोम रोम से छलकते अश्रु

तुम्हारे चरण कमलों का

अभिषेक करें

मैं अश्रु की हर बुन्दों में

गल गल

तुम्हारे चरण धूलि को सोख सकूँ


कौन भला इस सृष्टि में

मुझ सा बड़भागी होगा

जिसे तुम्हारी देह का अंक मिला

जिसके प्राणों को तुम्हारे प्राणों ने सींचा

जिसके सब भावों अभावों को

तुम्हारे पावन हृदय में

आश्रय मिला


जो सदा मुझ विमुखी की सम्मुखि को

अनंत काल तक प्रतीक्षा करने को

चुपचाप बाट जोहते रहे

वह सकल करुण सामर्थ्य तुम्हारी ही है

जो मुझ अपात्र को भी तुमने

अपनी उपस्थिति के आपूर आशीष से

तिल भर भी वंचित न होने दिया


तथागत के सम्यक् अर्थों में घटकर भी

इन पच्चीस सौ वर्षों में

तुमने मुझ मूढ़ से

अपनी सन्निधि अविरल सँजोए रखी


करुणामूर्ति

मुझे ले चलो

तुम्हारे सम्मुख होकर भी

मुझे नहीं भान है कि मैं सम्मुख हूँ

मैं तुम्हारे भला क्या सम्मुख होऊँगा

मेरी विमुखि को भी सम्मुख स्वीकारो

मेरी असहमति को भी सहमति ही धारो

तथागत मुझे ले चलो

तथागत मुझे ले चलो

तथागत मुझे ले चलो


धर्मराज

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