जगत में मेरे
तीन उधार बाक़ी हैं
साँझ अरुणाचला के उस पाहन से
जिसने स्वप्न में मुझे अडोल स्पर्श दिया है
भोर ओस की पहली झिलमिल से
जिसने जागृति में मुझे दर्शन दिया है
और मध्य रात्रि हरसिंगार की पत्तियों पर से सरककर झरे
उसके ही फूलों से
जिसने मुझे सुषुप्ति में सुनना सिखाया है
धर्मराज
01/02/2024
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