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लौटो वापस जाओ

लौटो

वापस जाओ

तुम कौन हो

वही जिसे मैंने जन्मों जन्मों में पुकारा है

तो भी वापस जाओ

जब मैं प्रेम पात्र न थी

आंसुओं की अन्तिम बूँद तक तुम्हें पुकारा

तब तो तुम नहीं आए

अब बिन बुलाए आ गए हो

लौटो वापस जाओ


अभी अभी तो प्रेम ने मुझे सीखा है

उसकी क्वाँरी आँख से

पहले खुद को तो निहार लूँ

उसके अनाहत गीतों के नाद से

खुद तो गूँज उठूँ

उससे रससिक्त मेरा हृदय

आपूर छलक तो उठे

प्रेम की मिट चुकी पगडंडियों पर

मुझे मिटकर

उन हृदयों के साथ फिर से चलना है

जो इसके प्यासे हैं

जिन्हें प्रेम ने पुकारा है


कहीं पथ पर

तुम भी मिल जाना

तुम्हें भी निहार लूँगी

प्राणों में उठते गीतों की धुन से

तुम भी तरंगायित होते हो

तो हो जाना

निकट होगे तो

छलकते हृदय की कुछ बूँदे

तुम्हें भिगो ही देंगी

पर अभी लौटो

वापस जाओ

धर्मराज

10/02/2021


 
 
 

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