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पकती कविता
ऐसा लगता है जैसे जैसे कविता परिपक्व होती है वह जीवित होती जाती है उस से उलाहनें और शिकायतें विदा होने लगती हैं उस से कवि विदा होने लगता...

Dharmraj
Apr 23, 20231 min read


प्रसाद चिंतामणि
चिंतामणि मिली है पूछती है बोलो क्या चाहिए दुनिया के तमाशे में जो चाहो वो किरदार तुम्हारा मैं मुस्कुराता हुआ जान रहा हूँ यह मणि देखने का...

Dharmraj
Apr 23, 20231 min read


बिछुड़े मीत
पथ के बिछुड़े मीत हो सके तो लौटना पकड़ लेना फिर से साथ किस नादानी में बहके बहके जाते हो देखो न दुर्गम पथ पर बढ़ रहे साथी के इन सधे पैरों...

Dharmraj
Apr 23, 20231 min read


जागते और जगाते रहिए
जागना और जगाना कल्याण के भावार्थ में बेजोड़ है दूसरा जागे न जागे बाहर आपके रोएँ रोएँ पर भीतर की हर एक कोशिका पर चित्त की छोटी से छोटी हर...

Dharmraj
Apr 23, 20231 min read


निमित्त मात्र
चतुर्थ पहर की रात्रि में उतर रहे नि:शब्द के अबाध महागीत को एक शब्द की भी अँजुरी में सँजोने की जिसे न चाह उठी सप्तम पहर के दिन में...

Dharmraj
Dec 20, 20211 min read


बैरंग पाती
बैरंग पाती आई थी उस गाँव से आया हरकारा पाती लेकर द्वार पर न जाने कब से खड़ा दस्तक दे रहा था मुझे समझ नहीं आता था क्या देकर पाती छुड़ाऊँ...

Dharmraj
Dec 1, 20211 min read


Flowering!
Flowering! Pay gratitude to the flower as much as you can For giving you the opportunity to appear But be careful Be grateful to the...

Dharmraj
Nov 29, 20211 min read
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