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वर्धमान कृतज्ञता
अपनी स्वर्णिम आभा से जल तरँग को कंचन करती जाती गोधूलि में विदा किरण को गलते देख कृतज्ञता में नवे सिर ने चाहा गलने से पहले क्षण भर को ही...

Dharmraj
Nov 15, 20211 min read


अमृत की घूँट और ग़लता कंठ
नेह की संक्रामकता ढंग ढंग से पुकार उठती है आओ चले आओ देखो यह रहा जल है पर उन तक नहीं पहुँचती जिनसे वायदे थे जो चिर परिचित थे जो प्राणों...

Dharmraj
Oct 28, 20211 min read


एक पाँव डोंगी एक पाँव घाट
तट पर घाट बना मैं उनकी बाट जोह रहा हूँ जिन्होंने गाँव से विदा देते समय मुझसे कहा था तुम चलो हम आते हैं वह परदेसी गाँव वहाँ की सराय वहाँ...

Dharmraj
Oct 19, 20211 min read


गीत गीत गीता
उस गीता को हृदय देना हो जो कभी कंठ से जूठी नहीं हुई पढ़ना हो जो कभी किताबों की जिल्दों में बाँधी नहीं गई जिसे अक्षरों में घेरकर शब्दों की...

Dharmraj
Sep 8, 20212 min read


बोध बोध ‘बुद्धत्व’
उनको प्रणाम करने पर उनका ध्यान मेरी तरफ़ गया। देखते ही उन्होंने बड़े स्नेह से मुझे अपने पास बिछी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया। वे पिछली...

Dharmraj
Sep 1, 20218 min read
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