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सहज मिले सो दूध है (ध्यानशाला भोर का सत्र, 21 अप्रैल 2024)
ध्यानशाला भोर का सत्र, 21 अप्रैल 2024 यहां जो भी हम कर रहे हैं उसका कोई अर्थ नहीं है, पर साथ ही इससे ज्यादा अर्थपूर्ण और उद्यम और कुछ...
Ashwin
Sep 12, 20243 min read


बिटिया ब्याहिल बाप - कबीर उलटवासी का मर्म (अरण्यगीत) - धर्मराज
१) बिटिया ब्याहिल बाप। जो चरखा जरि जाये बड़ैया ना मरे, मैं कांतों सूत हजार चरखुला जिन जरे। बाबा मोर बियाह कराव अच्छा बरहि तकाये, ज्यौ...
Ashwin
Jul 20, 20246 min read


दूसरे चरण से मुक्त जीना क्या है? (ध्यानशाला भोर का सत्र, 20 अप्रैल 2024)
ध्यानशाला भोर का सत्र, २० अप्रैल २४ दूसरे चरण से मुक्त जीना क्या है? मैं या मेरा होना ही दूसरा चरण है, ऐसा नहीं हो सकता है कि मैं भी...
Ashwin
Jul 20, 20245 min read


कछु अकथ कथ्यो है भाई - कबीर उलटवासी का मर्म (अरण्यगीत) - धर्मराज
१) कछु अकथ कथ्यो है भाई। नर को ढाढ़स देखो आई, कछु अकथ कथ्यो है भाई। सिंह शार्दूल एक हर ज़ोतिनि, सीकस बोइनि धानै। बन की भुलैया चाखुर...
Ashwin
Jul 20, 20248 min read


तजि दे बुधि लरिकैयाँ खेलन की - कबीर उलटवासी का मर्म (अरण्यगीत) - धर्मराज
त्यज दे बुधि लरिकैयाँ खेलन की। १) करो जतन सखि साईं मिलन की। गुड़िया गुड़वा सूप सुपलिया, त्यज दे बुधि लरिकैयाँ खेलन की। देव पितर औ भुइयाँ...
Ashwin
Jul 20, 20247 min read


“वह ध्यान जो धोखा नहीं है” | सप्ताहांत ध्यान सँवाद | Dharmraj | Ashu Shinghal | Aranyak
वह ध्यान जो धोखा नहीं है। न जाने कितना कुछ मिथ्या उस नाम के पीछे हम दुहराते रहते हैं, जिसे ध्यान कहते हैं। आशय है कि हम तथाकथित ध्यान भी...
Ashwin
Jul 20, 20249 min read


बासी भात - कबीर उलटवासी का मर्म (अरण्यगीत) - धर्मराज
बासी भात। १) माई मोर मानुसा अतीरे सुजान, धन्धा कुटिकुटी करत बिहान। बड़ी भोर उठी आँगन बाङू, बड़ो खाँच ले गोबर काङू। बासी भात मानुसे लिहल...
Ashwin
Jul 20, 20246 min read
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