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हरि ने अपना आप छिपाया (कबीर उलटबासी - धर्मराज)
प्राण हि तजूँ हरि नहीं बिसारूँ हरि ने अपना आप छिपाया हरि ने नफीज कर दिखराया हरि ने मुझे कठिन विध घेरी हरि ने दुविधा काटी मेरी हरि ने...
Ashwin
Oct 28, 20245 min read


'कबीर' कब से भये बैरागी (कबीर उलटबासी)
सुनो हो गोरख कबीर' कब से भये बैरागी तुम्हरी सूरति कहाँ को लागी उत्तर: बई चित्रा का मेला नहीं नहीं गुरू नहिं चेला सकल पसारा जिन दिन नाहीं...
Ashwin
Oct 28, 20246 min read


सारी जिम्मेदारी सम्यक अवलोकन पर है (ध्यानशाला, सुबह का सत्र, 26 अक्टूबर 2024)
तीन मित्र थे उन्हें पहाड़ की चोटी पर एक व्यक्ति खड़ा हुआ दिखा। एक मित्र ने कहा कि वह अपने मवेशी को ढूंढ रहा है, दूसरे मित्र ने कहा कि वह...
Ashwin
Oct 27, 20242 min read


यदि रास्ते हैं, तो वह जीवन ही नहीं है (ध्यानशाला, सुबह का सत्र, 25 अक्टूबर 2024)
ध्यानशाला, सुबह का सत्र, 25 अक्टूबर 2024 क्या कभी हमने इस तरह से देखा है कि जीवन जीवन ही इसलिए है, क्योंकि उसमें रास्ते नहीं हैं। यदि...
Ashwin
Oct 26, 20245 min read


द्वार बिनु दीवार (साप्ताहिक संवाद)
द्वार बिनु दीवार। कोई दीवार नहीं है केवल एक दरवाजा है, जिस पर एक ताला लगा हुआ, और हम अपनी नासमझी में उस ताले को खोलने में लगे हुए। जीवन...
Ashwin
Oct 26, 20243 min read


बिना पार को रचे आर में होना क्या है? (ध्यानशाला, सुबह का सत्र, 24अक्टूबर 2024)
बिना पार को रचे आर में होना क्या है? इसका कोई उत्तर नहीं आएगा, उत्तर आया तो समझिए कि पार बन गया। जो सम्यक रूप से प्रारंभ में चल पड़ा, तो...
Ashwin
Oct 25, 20244 min read


बिना पार के आर का होना क्या है? (ध्यानशाला, सुबह का सत्र, 23 अक्टूबर 2024)
बिना पार के आर का होना क्या है? बिना पार के आर में उपस्थित रहना क्या है? बिना पार के आर का जीना क्या है? पार का कोई भी दृष्टिकोण पैदा हुआ...
Ashwin
Oct 24, 20243 min read
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