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बिनु अक्षर सुधि होई - कबीर उलटवासी का मर्म (अरण्यगीत) - धर्मराज
बिनु अक्षर सुधि होई। १) रामुरा झीझी जंतर बाजे, कर चरण बिहूना नाचे। कर बिनु बाजै, सुनै श्रवण बिनु, श्रवण श्रोता सोई। पाटन सुबस सभा बिनु...
Ashwin
Jul 20, 202410 min read


बैठा रहे चला चहे चोख - कबीर उलटवासी का मर्म (अरण्यगीत) - धर्मराज
१) बैठा रहै चला चहै चोख बूझ बूझ पंडित मन चित लाय, कबहिं भरलि बहै कबहिं सुखाय। खन ऊबै खन डूबै खन औगाह, रतन न मिलै पावै नहिं थाह। नदिया...
Ashwin
Jul 20, 20247 min read


पूत भतारहि बैठी खाय - कबीर उलटवासी का मर्म (अरण्यगीत) - धर्मराज
१) पूत भतारहि बैठी खाय। बुढ़िया हंसी बोली मैं नित ही बार, मोसे तरुनि कहो कवनि नार। दांत गये मोरे पान खात, केश गये मोरे गंग नहात। नैन गये...
Ashwin
Jul 20, 20249 min read


जब जीवन में घोर संकट हो - सप्ताहांत ध्यान संवाद | धर्मराज | आरण्यक
जब जीवन में घोर संकट हो। १) कभी-कभी जीवन में बड़ी भीषण परिस्थितियां प्रकट हो जाती हैं। एक प्रश्न पूछा गया कि आपको कैसे पता है, जो आप मुझे...
Ashwin
Jul 20, 20245 min read


हंसा सुधि करो आपन देश - कबीर उलटवासी का मर्म (अरण्यगीत) - धर्मराज
हंसा सुधि करो आपन देश। १) हंसा सुधि करो आपन देश। जहां से आयो सुधि बिसराये, चले गयो परदेश। वही देशवा में जोते न बोवे, मोती फरे हमेश। वही...
Ashwin
Jul 20, 20244 min read


ध्यान संवाद - सिद्धार्थ एवं धर्मराज
ध्यान संवाद। हंस रहे हैं उतना ही तो काफी है, यह जानने की जरूरत ही क्या है कि वह क्यों हंस रहे हैं, अगर वह मजाक उड़ाने वाली हंसी ना हो।...
Ashwin
Jul 20, 20247 min read
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